हरिद्वार धर्म संसद: नफ़रत के फैलते कारोबार के आगे पुलिस क्यों लाचार है
The Wire
हरिद्वार में हुई तथाकथित धर्म संसद में कही गई अधिकांश बातें भारतीय क़ानूनों की धारा के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आती हैं, लेकिन अब तक इसे लेकर की गई उत्तराखंड पुलिस की कार्रवाई दिखाती है कि वह क़ानून या संविधान नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के लिए काम कर रही है.
गत 17-19 दिसंबर के दौरान हरिद्वार में एक तथाकथित धर्म संसद का आयोजन किया गया. इसे अनेक हिंदू धार्मिक नेताओं और कट्टरपंथियों ने संबोधित किया. इनमें से कई व्यक्तियों का इतिहास और उनके राजनीतिक संबंधों का खुलासा पहले किया जा चुका है. कुछ के खिलाफ पहले से अनेक मुक़दमे दर्ज हैं.
इस आयोजन की थीम थी ‘इस्लामिक भारत में सनातन का भविष्य: समस्या और समाधान.’ विषय विचित्र था. पता नहीं इनको छोड़कर देश में ऐसा कौन व्यक्ति, अदालत या सरकार है जो मानती हो कि हम लोग ‘इस्लामिक भारत’ में रह रहे हैं.
जनगणना (2011) के आंकड़े सबके सामने हैं. भारत में मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत 14.2 है और हिंदुओं का 79.8. अब भारत इस्लामिक कैसे हो गया, किसी को पता नहीं. ज़ाहिर है कि ये ‘हिंदू खतरे में है’ का घिसा-पिटा राग ही नए सुर में प्रस्तुत करने की कोशिश है.
आयोजन के दौरान अनेक आपत्तिजनक और भड़काऊ भाषण दिए गए. भाषणों में कुछ वक्ता घुमा-फिराकर बातें कर रहे थे. लेकिन बातों को उनके संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखने पर स्पष्ट है कि वे न तो हवा में तीर मार रहे थे न ही कोई सैद्धांतिक बातें कर रहे थे. वे इसी देश की और यहां रहने वाले मुसलमानों की बातें ही कर रहे थे, भले ही गोलमोल बातों के कारण उन पर केस न बन पाए.