'सूरज नदी में डूब गया हम गिलास में...' शायरों ने चांद ही नहीं, सूरज पर भी खूब लिखे हैं शेर
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गजलों व कविताओं में चांद को तो खूब सुना, लेकिन सूरज पर शायरी में कितना लिखा गया है. दरअसल, लिखने वालों ने सूरज, चांद, सितारों पर खूब लिखा और रचा है. सूरज पर जब राहत इंदौरी लिखते हैं... 'दिन ढल गया तो रात गुजरने की आस में, सूरज नदी में डूब गया हम गिलास में...' तो पढ़ने व सुनने वाले एक अलग रूमानियत में खो जाते हैं.
कवियों-शायरों ने अपनी शायरी, कविता व नज्म में चांद का जिक्र खूब किया है. लिखने वालों ने चांद की तुलना कभी महबूब से की तो कभी चांद की चमक और उसकी खूबसूरती पर बातें कहीं, लेकिन असलियत में चांद की तस्वीरें शायरों के चांद से जुदा हैं. चांद को देख करवाचौथ और ईद मनाई जाती है, लेकिन चांद और पूरी कायनात को रोशन करने वाले सूरज पर शायरों ने क्या लिखा है. आगे जानते हैं.
शायर डॉ. राहत इंदौरी ने सूरज पर अपने अंदाज में शेर कुछ यूं कहा है... दिन ढल गया तो रात गुजरने की आस में सूरज नदी में डूब गया हम गिलास में
अहमद नदीम कासमी ने लिखा है... सूरज को निकलना है सो निकलेगा दुबारा अब देखिए कब डूबता है सुब्ह का तारा
जी हार के तुम पार न कर पाओ नदी भी वैसे तो समुंदर का भी होता है किनारा
फ़ज़्ल ताबिश ने लिखा है... नकाब डाल दो जलते उदास सूरज पर अंधेरे जिस्म में क्यूं रोशनी नहीं जाती
इकबाल साजिद का शेर है कि... कल उजालों के नगर में हादसा ऐसा हुआ चढ़ते सूरज पर दिए की हुक्मरानी हो गई
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