
सुंदरलाल बहुगुणा- हिमालय और पर्यावरण का एक सच्चा रक्षक
The Quint
Sunderlal bahuguna| उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा ने कैसे खुद को पर्यावरण और हिमालय के लिए समर्पित कर दिया. Sunderlal Bahuguna well known Environmentalist Padma vibhushan Chipko movement leader
देश और उत्तराखंड राज्य ने सुंदरलाल बहुगुणा के तौर पर पर्यावरण का एक सच्चा सिपाही खो दिया है. हिमालय पुत्र और पर्यावरण के गांधी के तौर पर लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने वाले सुंदरलाल बहुगुणा कोरोना संक्रमित थे. 94 साल के बहुगुणा ने एम्स ऋषिकेश में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया. उनके निधन की खबर सुनते ही प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम लोगों ने दुख जताया. जानिए उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के एक छोटे से गांव में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा ने कैसे खुद को पर्यावरण और हिमालय के लिए समर्पित कर दिया.शुरुआती जीवन से ही समाजसेवा का भावसुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के सिल्यारा गांव में हुआ था. अपने शुरुआती जीवन से ही उन्हें सामाजिक कार्यों में रुचि थी. बताया जाता है कि अपनी 13 साल की उम्र में ही सुंदरलाल बहुगुणा राजनीति में सक्रिय हो चुके थे. उन्होंने अपने साथी श्रीदेव सुमन के साथ देश की आजादी की लड़ाई भी लड़ी. इसके बाद उन्होंने लाहौर जाकर अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की.वो राजनीति में भी लगातार एक्टिव थे, लेकिन 1956 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया. यहां से उन्होंने उत्तराखंड के लोगों और पर्यावरण के लिए लड़ाई शुरू कर दी. बहुगुणा ने सबसे पहले पिछड़ी जाति के लोगों का मंदिर में प्रवेश वर्जित करने का विरोध किया. उन्होंने हरिजनों को उनके अधिकार दिलाने के लिए भी आंदोलन किया. इसके अलावा 1960 के करीब उन्होंने शराब विरोधी आंदोलन को भी हवा देने का काम किया. इस आंदोलन में उत्तराखंड की हजारों महिलाएं भी उनके साथ थीं.चिपको आंदोलन से मिली देश और दुनिया में पहचानलेकिन 1960 के दशक के बाद वो पर्यावरण से जुड़ गए. यहां से उन्होंने समाज सेवा और पर्यावरण के प्रति अपना जीवन समर्पित करना शुरू कर दिया. अब तक कई आंदोलनों का हिस्सा रह चुके सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन में तब एक बड़ा मोड़ आया जब भारत सरकार ने चीनी सीमा पर अपने मोर्चे को मजबूत करने के लिए सड़कें बनानी शुरू कीं.उत्तराखंड के चमोली जिले से भी एक सड़क को मंजूरी दी गई. अब सड़क के लिए कई किलोमीटर की जमीन और वहां मौजूद पेड़ों को काटा जाना था. सड़क का टेंडर पड़ते ही पेड़ों की कटाई भी शुरू हो गई. 1972 तक हजारों पेड़ काटे जा चुके थे, जिन्हें देखते हुए...More Related News