सीमांचल का सियासी समीकरण... ओवैसी फैक्टर से किसको फायदा, किसका नुकसान?
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लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को बिहार के सीमांचल में तीन जिलों में वोटिंग होगी जिसके लिए नामांकन की आखिरी तारीख भी खत्म हो चुकी है. ऐसे में तमाम उम्मीदवार मुस्लिम बहुल इस इलाके में वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश में लगे हुए हैं. ऐसे में ग्राउंड जीरो पर क्या हैं हालात और वोटर इस बार किसका देंगे साथ ये जानने के लिए पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट.
बिहार में लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में जिन इलाकों में वोटिंग होनी है उसमें सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र सीमांचल का है जो एक मुस्लिम बहुल इलाका है. सीमांचल के चार जिले जिसमें किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया शामिल है और सभी मुस्लिम बहुल इलाके हैं. यहां पर मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है. ये चारों लोकसभा सीट इस हिसाब से सभी राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.
पिछले कुछ सालों में "हैदराबाद की पार्टी" के नाम से मशहूर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में काम करना शुरू किया है और जिसका नतीजा 2020 में देखने को मिला जब ओवैसी की पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में इस इलाके में पांच सीटों पर जीत हासिल की थी.
बिहार में कोई स्थानीय मुस्लिम चेहरा या नेता नहीं होने का फायदा ओवैसी ने इस इलाके में रहने वाले मुसलमान के बीच उठाया और आज ओवैसी सीमांचल में घर-घर का नाम बन चुके हैं. पिछले तकरीबन 10 सालों से सीमांचल के पिछड़ेपन को बड़ा मुद्दा बनाते हुए ओवैसी लगातार यहां काम कर रहे हैं और इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इस इलाके से लड़ने का ऐलान किया है.
पहले उन्होंने ऐलान किया था कि सीमांचल के सभी सीटों के साथ ही बिहार के दूसरे हिस्सों में भी कुल 16 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, हालांकि अब ओवैसी ने दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव में सिर्फ किशनगंज में ही अपना उम्मीदवार उतारा है.
किशनगंज और ओवैसी कनेक्शन
सबसे पहले बात करें किशनगंज की तो किशनगंज इन चारों मुस्लिम बहुल जिलों में सबसे ज्यादा मुसलमान आबादी वाला जिला है जहां पर मुस्लिम समुदाय की आबादी तकरीबन 68 फीसदी है. किशनगंज लोकसभा सीट के अंतर्गत किशनगंज और पूर्णिया जिले के कुछ हिस्से आते हैं.
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