
सिंघू, टिकरी और ग़ाज़ीपुर सीमाएं भारतीय जनतंत्र की यात्रा के मील के पत्थर हैं
The Wire
किसान आंदोलन इसका जीवित प्रमाण है कि यदि लक्ष्य की स्पष्टता हो तो विचार भिन्नता के बावजूद संयुक्त संघर्ष किया जा सकता है. संयुक्त किसान मोर्चा ने एक लंबे अरसे बाद संयुक्त संघर्ष की नीति को व्यावहारिकता में साबित करके दिखाया है.
यह लम्हा किसानों का है. उनके संघर्ष का. उस संघर्ष की महिमा का. उनके धीरज का. उनके जीवट का. अपनी समझ पर किसानों के भरोसे का. अभय का. प्रभुता के समक्ष साधारणता का.
विशेषज्ञता के आगे साधारण जन के विवेक का. शस्त्रबल के आगे आत्मबल का. सत्ता के अहंकार के समक्ष संघर्ष की विनम्रता का. चतुराई, कपट के समक्ष खुली, निष्कवच सरलता का. कटुता के समक्ष मृदुता का. यह क्षण धर्म की सांसारिक प्रासंगिकता का भी है. सत्याग्रह का.
इस क्षण को क्या हम प्रदूषित करें उसकी चर्चा से और उसके शब्दों के विश्लेषण से जो हिंसा, घृणा, अहंकार, अहमन्यता, कपट, संकीर्णता और क्षुद्रता का पर्याय है? इसे उसका क्षण न बनने दें. यह उसकी रणनीतिक चतुराई पर अवाक होने का वक़्त नहीं है.
याद रखें, तानाशाह और फासिस्ट कभी झुकते हुए दिखना नहीं चाहता. जब वह झुके, इसे उसकी चतुराई कहकर उस पर मुग्ध होने की जगह जनता की शक्ति की विजय का अभिनंदन करने की ज़रूरत है.