सामाजिक ताने-बाने पर चोट और बढ़ती सांप्रदायिकता पर कॉरपोरेट वर्ग चुप क्यों है
The Wire
वर्तमान परिस्थितियों को लेकर कॉरपोरेट अग्रणियों के बीच पसरे विराट मौन में शायद ही कोई अपवाद मिले. यह बात अब शीशे की तरफ साफ हो गई है कि मौजूदा निज़ाम में कॉरपोरेट समूहों और हिंदुत्व वर्चस्ववादी ताकतों की जुगलबंदी नए मुकाम पर पहुंची है.
सेलेब्रिटी खिलाड़ी और अभिनेताओं के बीच एक विचित्र समानता दिखाई देती है. अपने खेल के मैदान से परे या अपनी रील जिंदगी से परे वह शायद ही कभी बोलते दिखाई देते हैं. ऐसा नहीं कि वह विज्ञापनों में अवतरित नहीं होते और न ही तरह तरह के रंगारंग कार्यक्रमों में पूरी चमक-दमक के बीच अपनी हाजिरी नहीं लगाते, लेकिन इससे परे वह मौन ही ओढ़े रहते हैं.
पता नहीं उनके आंखों पर कैसी पट्टी पड़ी रहती है कि अपनी आस्था के चलते मासूमों की सड़कों पर की जा ही भीड़ हत्या, अपनी मर्जी से प्रेम करने वाले जोड़ों पर समाजी और सियासी ताकतों के हमले या सार्वजनिक मंचों से अल्पसंख्यकों के जनसंहार के किए जाने वाले आह्वान, कुछ भी उन्हें दिखाई नहीं देता, न सुनाई देता है.
कॉरपोरेट अग्रणी भी गुणात्मक तौर पर इससे भिन्न नहीं होते.
ऐसा लग सकता है कि तमाम चिल्लाहटों और कराहों को सुनते हुए उनकी भी चेतना भी वैसे ही बोथर हो जाती है, वह भी जब बोलते हैं मुनाफे-घाटे की बात या बादशाह और उसके वज़ीरों की सलामती या उनकी बरकत से आगे नहीं जाते.