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सांसद निधि योजना में हुए नए बदलाव इसे अधिक केंद्रीकृत और कम समावेशी बनाएंगे
The Wire
सांसदों को मिलने वाली स्थानीय विकास निधि योजना में हुए हाल के बदलावों में उन्हीं को नज़रअंदाज़ किया गया है जिनके लिए यह मुख्य रूप से बनाई गई है- हाशिये पर पड़े ग़रीब वर्ग. साथ ही योजना के कामकाज को केंद्रीकृत करने का प्रयास भी किया गया है.
भारत जैसे देश में जहां असमानता इतनी प्रमुख है, कोई विकास योजना इसके समावेशी न होने के चलते असफल हो सकती है.
सांसदों को मिलने वाली स्थानीय विकास निधि (MPLAD) योजना 1993 में शुरू की गई थी ताकि सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र या राज्य की विकास मांगों को पूरा करने में सीधे योगदान कर सकें. योजना कई कमियों के बावजूद इसलिए महत्वपूर्ण रही क्योंकि यह मुख्य रूप से सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है और उन क्षेत्रों तक पहुंच सुनिश्चित करती है, जो विकास के नाम पर बनाई जाने वाली योजनाओं में पिछड़ जाते हैं.
किसी भी अन्य योजना की तरह तबसे इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं- चाहे भले के लिए या बुरे के लिए. लेकिन हाल ही में हुए परिवर्तन निश्चित रूप से बाद वाली श्रेणी के हैं.
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा मौजूदा दिशानिर्देशों में किए गए एक नए संशोधन, जो इस वर्ष 1 अप्रैल से प्रभावी होगा, के अनुसार, अनुसूचित जाति (एससी) और जनजाति (एसटी) आबादी वाले क्षेत्रों में उनके लिए क्रमशः 15% और 7.5% धनराशि के अनिवार्य आवंटन के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है.