
सपा के 'मिशन कांशीराम' को धार देंगे मायावती के पुराने साथी, क्या है अखिलेश का प्लान?
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सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने यादव-मुस्लिम आधार को बचाए रखते हुए दलित वोटों को जोड़ने की मुहिम शुरू की है, जिसे 'मिशन कांशीराम' का नाम दिया गया है. इस मिशन के जरिए पार्टी सामाजिक आंदोलन खड़े कर दलित और अतिपिछड़े वर्ग के बीच अपनी पकड़ को मजबूत करने की कोशिश में जुट गई है.
उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी मिशन-2024 के लिए खास रणनीति पर काम कर रही है. अखिलेश यादव ने रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण कर 'मिशन कांशीराम' की बुनियाद रख दी है. मिशन कांशीराम को धार देने और आगे बढ़ाने का काम कांशीराम के ही सियासी प्रयोगशाला से निकले नेता करेंगे, जो मायावती की 'हाथी' से उतर कर सपा की 'साइकिल' पर सवार हैं.
ये नेता सूबे के दलित और अतिपछड़े वर्ग के बीच जाकर कांशीराम के संदेश देंगे. इस तरह सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत बनाने का काम करेंगे. अखिलेश ने इस मिशन का जिम्मा स्वामी प्रसाद मौर्य, इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, आरएस कुशवाहा, त्रिभवन दत्त जैसे बसपा से सपा में आए नेताओं को दे रखा है.
अखिलेश ने कांशीराम पर ठोका दावा अखिलेश यादव ने सोमवार को रायबरेली के मान्यवर कांशीराम महाविद्यालय में बसपा के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करते हुए उनकी विरासत पर दावा ठोक दिया है. उन्होंने कहा कि कांशीराम के अनुयायी अब हमारे साथ हैं. ये सभी एक वक्त बसपा में नंबर वन थे और अब सपा में सामाजिक आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं. इस दौरान उन्होंने दलित और पिछड़ों को हक दिलाने की दुहाई देते हुए कहा कि कांशीराम और नेताजी मुलायम सिंह यादव के संकल्प को सपा पूरा करेगी. सामाजिक समरसता कायम करते हुए 2024 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करेगी और दलितों, पिछड़ों को हक दिलाएगी.
अखिलेश यादव ने जिस तरह सधे हुए अंदाज में बार-बार सामाजिक आंदोलन की दुहाई दी थी, उससे साफ तौर पर सपा के भविष्य की सियासत को समझा जा सकता है. सपा यह जानती है कि कांशीराम ने दलितों के बीच राजनीतिक चेतना जगाने के लिए सामाजिक आंदोलन का सहारा लिया था. इसीलिए सपा अध्यक्ष ने जोर देकर कहा कि कांशीराम के सपनों को पूरा करने की बारी और इसके लिए नए सामाजिक आंदोलन की जरूरत है.
कांशीराम के बहाने दलित सियासत अखिलेश यादव ने कहा कि कांशीराम कई जगह से चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें नेताजी ने समाजवादियों के साथ मिलकर इटावा से लोकसभा में भेजा. उनके लोकसभा में जाने के बाद ही प्रदेश में नई राजनीति की शुरुआत हुई. इटावा से कांशीराम को लोकसभा में भेजने का जिक्र ऐसे ही नहीं किया, बल्कि इसके पीछे सियासी मकसद भी छिपे हैं. इतना ही नहीं, अखिलेश ने दोहराया कि वे कांशीराम के बताए रास्ते पर चलकर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संकल्पित हैं और कांशीराम के साथ काम कर चुके नेता ही सपा के इस आंदोलन को आगे बढ़ाने का काम करेंगे.
सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर इंद्रजीत सरोज तक सामाजिक आंदोलन की दुहाई दे रहे हैं. उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती पर मिशन कांशीराम से भटकने के आरोप लगाकर दलितों के बीच संदेश देने का प्रयास किए. इस तरह से सपा दलित वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश तेज कर दी है. सपा की रणनीति है कि 2022 के चुनाव में मिले करीब 36 फीसदी वोटबैंक में पांच से सात फीसदी अतिरिक्त वोट जुड़ जाए तो बीजेपी से मुकाबला आसान हो जाएगा. रायबरेली से शुरू मिशन कांशीराम इसी रणनीति का हिस्सा है.

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