सत्ता का संकट: सिंधिया के बाद शिंदे... इतिहास सिखा रहा सबक
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सरकारों को गिराकर भाजपा की मदद करने के अब तक तीन नाटकीय घटनाक्रम सामने आ चुके हैं. विजयाराजे सिंधिया, ज्योतिरादित्य और अब एकनाथ शिंदे. लेकिन लगता है कि महाराष्ट्र के नेताओं ने इतिहास को भुला दिया है. फिलहाल एकनाथ शिंदे का नाम चर्चा में हैं.
'गर गुलाब को हम किसी और नाम से भी पुकारें तो वो ऐसी ही खूबसूरत महक देगा' रोमियो और जूलियट नाटक में विलियम शेक्सपियर की लिखी यह पंक्ति आज भी लोकप्रिय है. नाटक में जब जूलियट यह तर्क देती है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि रोमियो उसके परिवार के प्रतिद्वंदी घर मोंटेक से है. यह संदर्भ आज के समय में विशेष रूप से महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर सटीक बैठता है.
सरकारों को गिराकर भाजपा की मदद करने के अब तक तीन नाटकीय घटनाक्रम सामने आ चुके हैं. विजयाराजे सिंधिया, ज्योतिरादित्य और अब एकनाथ शिंदे. लेकिन लगता है कि महाराष्ट्र के नेताओं ने इतिहास को भुला दिया है. इस समय एकनाथ शिंदे का नाम चर्चा में हैं. शिंदे ने महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी सरकार को हिला दिया और उनकी बगावत भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक अलग भूमिका लिखने जा रही है. मगर, ऐसा लगता है कि इस विद्रोह के मास्टरमाइंड माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कुछ भूल गए हैं.
सबसे पहली बात नवंबर 2021 की करते हैं. इंडिया टुडे के कमलेश सुतार ने देवेंद्र फडणवीस से एक सवाल किया कि मध्य प्रदेश में भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पकड़ लिया, क्या कोई और शिंदे है जिसे फडणवीस या बीजेपी ने महाराष्ट्र के लिए पकड़ा है? इस पर फडणवीस ने कहा- 'ऐसा कोई शिंदे नहीं है.'
अब जब महाराष्ट्र में उद्धव की सत्ता चली गई तो केंद्र में शिंदे का नाम ही आया. ऐसे में कमलेश सुतार ने हाल ही में एक ट्वीट किया और लिखा- “नवंबर 2021 में मैंने देवेंद्र फडणवीस से पूछा था- “जैसे बीजेपी को मप्र में सिंधिया मिले, क्या महाराष्ट्र में कोई शिंदे दिखाई दे रहे हैं?” किसने सोचा होगा! #एकनाथ शिंदे जैसा कि कहा जाता है- अपने इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए. ऐसा लगता है कि फडणवीस ने बहुत जल्द उनसे बात कर ली. इसके बाद शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे ने शिवसेना से वाकआउट किया और दावा किया कि पार्टी अपनी हिंदुत्व विचारधारा को भूल गई है. सिर्फ वंशवाद की राजनीति कर रही है और पार्टी में उनकी अनदेखी की जा रही है.
शिंदे ने पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे पर यह भी आरोप लगाया है कि वे अपने बेटे आदित्य का समर्थन करते हैं. शिंदे का दावा है कि उनके पास 37 से ज्यादा विधायक हैं. पार्टी के नाम, चुनाव चिह्न और सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बल भी है. और उद्धव के त्यागपत्र के बाद यह तय हो गया कि शिंदे ने बड़ी लकीर खींच दी है.
महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों के बाद असली शिवसेना और एनसीपी के विवाद का समाधान होने की उम्मीद है. बाल ठाकरे की शिवसेना और बीजेपी की साझेदारी के बावजूद, उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी को मजबूती से जीत नहीं दिला सके. उनके राजनीतिक भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. उद्धव और शरद पवार के साथ कांग्रेस की सीटें जोड़ने पर भी शिंदे की शिवसेना आगे है. यह चुनाव नतीजे महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण बना सकते हैं.
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