सत्ताधारियों को कॉमेडी और व्यंग्य से इतनी परेशानी क्यों है
The Wire
किंग लियर यूं तो किसी की आलोचना को बर्दाश्त नहीं करता था, मगर उसने एक दरबारी विदूषक को कुछ भी कहने की इजाज़त दे रखी थी. आज के भारत में ऐसा होने की भी गुंजाइश नहीं है. हमारे लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए, मगर उतने ही तानाशाह नेता अपने आसपास सच बोलने वाले किसी मसखरे की अपेक्षा चाटुकारों और चारणों को पसंद करते हैं.
किंग लियर यूं तो किसी की आलोचना को बर्दाश्त नहीं करता था, यहां तक कि अपनी बेटी द्वारा की जाने वाली आलोचना को भी नहीं, मगर उसने एक दरबारी मसखरे या विदूषक को उसे कुछ भी कहने की इजाजत दे रखी थी और वह सजा से मुक्त था. राजा ऐसा अनुमानतः सत्य की नब्ज थामे रखने के लिए करता था, लेकिन अधिनायकवादी नेता और तानाशाह ऐसी खरी आलोचना का स्वागत नहीं करते हैं.
इसलिए भारत में भी आज ऐसा होने का कोई गुंजाइश नहीं है. हमारे लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए, मगर उतने ही तानाशाह नेता अपने आसपास सच बोलने वाले ऐसे किसी मसखरे को पसंद नहीं करते- वे चाटुकारों और चारणों को पसंद करते हैं.
भारतीय जनता पार्टी इस मामले में कुख्यात तरीके से छुई-मुई सरीखी है. हालांकि दूसरी राज्य सरकारें भी अपने महान नेताओं का किसी भी तरह से मजाक बनाने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति पर कार्रवाई करने के मामले में पीछे नहीं रहती हैं.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर कोई चुटकुला या मीम साझा करना आपको जेल की हवा खिलाने के लिए काफी है. कुछ साल पहले एक प्रोफेसर साहब को इसका अनुभव हो चुका है. महाराष्ट्र में एक युवा कॉमेडियन को कथित तौर पर छत्रपति शिवाजी पर अपमानजक टिप्पणी करने के लिए, जो उसने असल में की ही नहीं थी, सरकार द्वारा कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी दी गई थी.