
संवैधानिक संस्थाओं में व्यक्तिगत आज़ादी के मूल्य के प्रति तिरस्कार का भाव क्यों है
The Wire
अक्सर गिरफ़्तारी हो या ज़मानत, पुलिस और अदालत सत्ता से सहमति रखने वालों के मामले में 'बेल नियम है, जेल अपवाद' का सिद्धांत का हवाला देते दिखते हैं पर मुसलमानों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं या पत्रकारों का नाम आते ही इस नियम को उलट दिया जाता है.
फ़िल्मकार अविनाश दास को गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की अदालत ने ज़मानत दे दी. सिर्फ़ एक दिन की पुलिस हिरासत के बाद जमानत दे दिया जाना भारत में ऐसी अनहोनी हो गई है कि अविनाश के मित्र, परिचित, जो दिल में प्रार्थना तो इसी की कर रहे थे, लेकिन जिन्हें इसकी उम्मीद क़तई न थी, इस ख़बर को सुनकर हैरान रह गए. उनकी तैयारी किसी और ख़बर की थी.
अविनाश दास को क़ायदे से गिरफ़्तार ही नहीं किया जाना था, लेकिन आज के भारत में पुलिस से संवैधानिक नियंत्रण की आशा करना व्यर्थ है. अविनाश दास ने भ्रष्टाचार की आरोपी एक प्रशासनिक अधिकारी के साथ भारत के आज के गृहमंत्री की एक पुरानी तस्वीर ट्वीट की थी.
यह किस क़िस्म का अपराध था, समझना मुश्किल है. इसे पुलिस ने जालसाज़ी कहकर अविनाश को गिरफ़्तार किया. बहरहाल! एक दिन की पुलिस हिरासत के बाद अविनाश को स्थानीय अदालत ने जमानत दे दी.
अविनाश दास को तक़रीबन उसी वक्त पुलिस की हिरासत में भेजा जा रहा था जब पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर को भारत की राजधानी दिल्ली में तिहाड़ जेल से बिना कोई देर किए रिहा किए जाने का आदेश दिया जा रहा था. सबसे बड़ी अदालत ज़ुबैर, एक भारतीय नागरिक, भारत के करोड़ों लोगों में से एक, की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने को इतनी कटिबद्ध और व्यग्र थी कि उसने अपने निर्णय का व्यावहारिक हिस्सा पहले टाइप करवाया.