संविधान दिवस पर हिंदी में अपनी बात कहकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जीत लिया सबका दिल
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संविधान दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी ने अपनी बात कहकर सबका दिल जीत लिया. उन्होंने सरकारी भाषण के बाद हिंदी में अपने दिल की बात कही, जिसके बाद पूरा सभागार खड़े होकर तालियां बजाने लगा. उन्होंने कहा कि उन लोगों को भी न्याय मिलना चाहिए, जो छोटे-छोटे अपराधों में जेल में बंद हैं.
संविधान दिवस पर अंग्रेजी में औपचारिक सरकारी भाषण के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हिंदी में अपनी असरकारी भावनाएं सबके सामने रखीं तो सुप्रीम कोर्ट का पूरा सभागार खड़ा होकर तालियां बजाने लगा. सब जान गए कि जो बात राष्ट्रपति ने सहज सरल अंदाज में कहीं, वही तो सबके दिल में हैं.
राष्ट्रपति मुर्मू ने अंत में कहा कि मैं अपनी बात अधूरी छोड़ रही हूं. जो मैंने नहीं कहा आप सब उस पर विचार करना. बहुत ही नफासत वाले अंदाज में अंग्रेजी में लंबी चौड़ी बातें कहने वाली हस्तियों के सामने राष्ट्रपति ने अपने दिल की सुनकर सबका मन मोह लिया. राष्ट्रपति ने अंग्रेजी में औपचारिक लिखित भाषण पढ़ा, लेकिन असल दिल की बातें हिंदी में अनौपचारिक रूप से कही.
हिंदी भाषण पर सभागार इस कदर भावुक हुआ कि सबने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट से उनके साथ अपनी भावनाएं जोड़ीं. अपना अंग्रेजी भाषण पूरा कर राष्ट्रपति ने पन्ने समेटे और हिंदी के आंगन में उतर आईं. उन्होंने देश की सबसे बड़ी अदालत के सभागार में मौजूद चीफ जस्टिस और जजों के साथ अपनी सरकार के मंत्रियों और दिग्गज वकीलों से कहा कि मैं बहुत छोटे गांव से आई हूं. बचपन से देखा है कि हम गांव के लोग तीन ही लोगों को भगवान मानते हैं गुरु, डॉक्टर और वकील.
गुरु ज्ञान देकर, डॉक्टर जीवन देकर और वकील न्याय दिलाकर भगवान की भूमिका में होते हैं. अपने पहले विधायक कार्यकाल में विधानसभा की कमेटी के अपने अनुभव साझा किए. अपनी उम्मीदों के सच न होने का अफसोस जताया. फिर राज्यपाल होने के दौरान आए अनुभव साझा किए. राष्ट्रपति ने भावुक अंदाज में जजों से कहा कि जेल में बंद लोगों के बारे में सोचें. थप्पड़ मारने के जुर्म में सालों से जेल में बंद हैं.
उनके लिए सोचिए. उनको न तो अपने अधिकार पता हैं न ही संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार या संवैधानिक कर्तव्य. उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा. उनके घर वाले उनको छुड़ाने की हिम्मत नहीं कर पाते क्योंकि मुकदमा लड़ने में ही उनके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं. दूसरों की जिंदगी खत्म करने वाले हत्यारे तो बाहर घूमते हैं, लेकिन आम आदमी मामूली जुर्म में वर्षों जेल में पड़े रहते हैं. सरकार पर बोझ हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि और ज्यादा जेल बनाने की बात होती हैं. ये कैसा विकास है, जेल तो खत्म होनी चाहिए.
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