संडे व्यू: मौत के बीच कैसा क्रिकेट? फिर ‘तीसरी दुनिया’ बना भारत
The Quint
From India COVID crisis to IPL 2021, best weekend articles, opinions curated just for you in Hindi. भारत के कोविड संकट से लेकर आईपीएल 2021 तक, संडे व्यू में पढ़ें देश के बड़े अखबारों के सबसे जरूरी लेख, ओपिनियन हिंदी में.
मौत के बीच गगनचुंबी छक्कों में कैसा आनंद?सुरेश मेनन द हिंदू में लिखते हैं कि दर्द और पीड़ा के बीच देश मे संवेदनहीन टूर्नामेंट जारी है और इसे टीवी पर देखने से हो रहे अपराधबोध की गहराई को समझ पाना भी मुश्किल है. आईपीएल को स्पोर्ट्स समझने का भ्रम न पालें. यह टीवी पर एक लोकप्रिय खेल का वर्जन है जहां उत्पाद बेचे जाते हैं और जो किसी सीरियल का आइडिया भर है. 78 मीटर की लंबाई वाला छक्का या फिर मिडिल स्टंप उड़ाती यॉर्कर गेंद की कितनी बड़ी कीमत हम चुका रहे हैं, अगर हमारे आसपास खौफनाक तरीके से लोग मर रहे हैं और उम्मीदें टूट रही हैं?मेनन लिखते हैं कि सार्वजनिक खुशी, क्रिकेट के आंकड़े और रोमांचक कमेंट्री बेमतलब से हो गए हैं. तीन दिन में 10 लाख से अधिक पीड़ित कोरोना संक्रमितों और उनके परिवारों को इस बात से क्या मतलब कि विराट कितनी गेंदों में हाफ सेंचुरी पूरा करते हैं. किसी मित्र के मैसेज के हवाले से लेखक लिखते हैं कि कुछ समय बाद जब आईपीएल खत्म हो जाएगा तो मुश्किल घड़ी में खामोश यही प्रबंधन, खिलाड़ी अपना जख्मी दिल दिखाएंगे और चेक काटेंगे. बड़े-बड़े खिलाड़ी उन्हें ट्वीट करेंगे. लेखक ने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी पीटर कमिंग्स की सराहना की है कि उन्होंने सबसे पहले ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए 50 हजार डॉलर की राशि देने की घोषणा की.आईपीएल टूर्नामेंट भर नहीं है. यह बीसीसीआई के लिए खिलाड़ियों और टीमों पर नियंत्रण करने का प्लेटफॉर्म है. विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी अगर आर.अश्विन की राह पर टूर्नामेंट से दूर रहने का फैसला लेते तो कुछ असर दिख सकता था. लेकिन बीसीसीआई से पंगा कौन ले?‘तीसरी दुनिया’ में घरवापसी! वायरस से टूटा ‘सुपर पावर’ का सपनाटीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में सवाल उठाया है कि क्या भारत 16 साल बाद एक बार फिर से दूसरे देशों से मदद मांगने वाला ‘तीसरी दुनिया’ का देश बन गया है? वे कहते हैं इसका जवाब ‘हां’ भी है और ‘नहीं’ भी. ‘नहीं’ इसलिए क्योंकि भारत ने भी संकट की घड़ी में दुनिया के कई देशों की मदद की थी. ‘हां’ इसलिए कि इस आपातकालीन मदद की जड़ में है अक्षमता और असाधारण घपले. ‘सांस्थानिक कमजोरी’ तीसरी दुनिया की खासियत होती है. कई मायनों में भारत इस ओर लौटा है. चाहे वायरस हो या फिर डोकलाम- हमने बीच रास्ते ...More Related News