
संजय गांधी को खोने का गम... पूजा पर बैठीं इंदिरा के झर-झर बहते आंसू और सामने देवी चामुण्डा की प्रतिमा, उस रोज मंदिर में क्या-क्या हुआ?
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इंदिरा गांधी 1977 से 1980 के बीच देश के बड़े-बड़े मंदिरों में हाजिरी दे रही थीं. लेकिन संजय गांधी को खोकर हिमाचल प्रदेश स्थित देवी चामुण्डा के मंदिर पहुंचीं इंदिरा के आंसू रुक नहीं रहे थे. क्या इन आंसुओं के पीछे एक पुजारी को वो कथन था जब उसने कहा था कि मां साधारण मनुष्यों का अनादर तो सहन कर लेती है, लेकिन जब शासक वर्ग ऐसा करता है तो...
देवी चामुण्डा की प्रतिमा सामने थी. पंडित मंत्र पढ़ते हुए देवी का आह्वान कर रहे थे. पूजा पर बैठी थीं भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी. वह पंडित के कहे अनुसार मुद्राएं बना रही थीं. लेकिन उनके आंसू थे कि रुक नहीं रहे थे. वह रोती जा रही थीं, रोती ही जा रही थीं. इंदिरा की आंखों से टपक रहे नयनजल प्रायश्चित के थे या फिर पश्चाताप के! मां इंदिरा का विलाप अपने छोटे बेटे और क्राउन प्रिंस संजय गांधी के लिए था. जिन्हें वह कुछ ही महीने पहले सदा के लिए खो चुकी थीं.
आज उन्हीं संजय गांधी की जयंती है. संजय होते तो आज जीवन के 77 वसंत पूरे कर चुके होते. लेकिन 16वीं सदी के उस मंदिर में भारत की प्रधानमंत्री! माजरा क्या था? फिर ये अनुष्ठान? और सबसे हैरानकुन सवाल- आयरन लेडी इंदिरा के नैन देवी के सामने बरस क्यों रहे थे?
इन सवालों पर पड़े रहस्यों से पर्दा उठाया है वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस की कंट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने. उन्होंने अपनी किताब 'How Prime ministers decide' में बतौर पत्रकार देश के प्रधानमंत्रियों की जिंदगी में करीबी से दस्तक दिया है और पन्ना-पन्ना पलटते पलटते वहां तक चली गई हैं, जहां उस किरदार पर कोई मुखौटा नहीं होता. इस किताब में नीरजा ने इंदिरा की शख्सियत के अंदर मौजूद कोमल मां को टटोला है.
शपथ ग्रहण के बाद कीर्तन करने आ गईं इंदिरा
तो किस्सा यूं है. नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती हैं- जनवरी 1980 में इंदिरा फिर से देश की प्रधानमंत्री चुनी गईं. 14 जनवरी 1980 को जब वे पीएम पद की शपथ लीं, उसी दिन उन्होंने 12 विलिंग्टन क्रेसेंट रोड स्थित अपने आवास पर कीर्तन का आयोजन किया था. उत्तर भारत में पावन मौकों पर इस तरह का आयोजन आम हैं. राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण के बाद वे तुरंत अपने घर आ गईं और कीर्तन में शामिल हो गईं.
इसी दौरान इंदिरा के इनर सर्किल में शामिल अनिल बाली ने उन्हें याद दिलाया कि अब चुनाव समाप्त हो चुका है, शपथ ग्रहण भी हो चुका है. इसलिए उन्हें अपने वादे के अनुसार चामुण्डा देवी के दर्शन करने के लिए जाना चाहिए. इंदिरा ने तुंरत ही सहमति में हामी भरी. उन्होंने अनिल बाली से कहा कि इस यात्रा के लिए उन्हें 4-5 महीने का समय चाहिए.

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