शाकाहारवाद महज़ आहार का मामला नहीं है…
The Wire
तामसिक भोजन पर रोक, अंडा-मांसाहार पर पाबंदी जैसी बातें भारत की जनता के वास्तविक हालात से कतई मेल नहीं खातीं, क्योंकि भारत की आबादी का बहुलांश मांसाहारी है. साथ ही, किसी इलाक़े विशेष की नीतियां बनाने के लिए लोगों के एक हिस्से की आस्था को वरीयता देना एक तरह से धर्म, जाति, नस्लीयता आदि आधार पर किसी के साथ भेदभाव न करने की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन भी है.
‘भविष्य की खोज’ – यही शीर्षक था उस दार्शनिक व्याख्यान का, जिसे जाने-माने ब्रिटिश लेखक जनाब एचजी वेल्स ने लंदन के रॉयल इंस्टिट्यूशन के सामने दिया था. (1902) आज के वक्त़ भले ही दुनिया उन्हें ज्यूल वर्न्स के साथ साइंस फिक्शन के जन्मदाता को तौर पर अधिक जानती हो, लेकिन अपने जमाने में वह प्रगतिशील सामाजिक आलोचक के तौर पर मशहूर थे और उन्होंने कई विधाओं में लेखन किया था. अपने इस व्याख्यान में तमाम अन्य बातों का अनुमान लगाने के अलावा एचजी वेल्स ने पूंजीवादी व्यवस्था के विलोप और अमन एवं समृद्धि की एक दुनिया के उभरने की संभावना प्रकट की थी. वैसे 21 वीं सदी की तीसरी दहाई की शुरूआत में कोई भारत के भविष्य के बारे में कुछ बात करना चाहें, दुनिया के इस सबसे ‘बड़े जनतंत्र’ के बारे में कोई भविष्यवाणी करना चाहे तो क्या कह सकता है? दिल्ली से बमुश्किल 150-160 किलोमीटर दूर मथुरा शहर का सूरतेहाल बहुत कुछ संकेत दे सकता है. चंद रोज पहले लगभग 4.5 लाख आबादी (वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक) के इस शहर में- जहां मुसलमानों की आबादी 18 फीसदी है और दलितों की आबादी लगभग 20 फीसदी है, मीट के व्यापार पर पाबंदी लगा दी गई. (इसके साथ ही उन्होंने मद्य के व्यापार को भी पाबंदी के दायरे में रखा.)More Related News