
शहाबुद्दीन: क्या वक़्त की राजनीति के एक प्यादे भर थे 'सिवान के सुल्तान'
BBC
शहाबुद्दीन सिवान के इतिहास का हिस्सा हैं. भले ही उनकी देह कहीं और दफ़्न हो लेकिन उनकी कहानियां बिहार के इस सीमावर्ती शहर और इसके लोगों की ही हैं.
"आसमान में बादल छितराए रहेंगे. बादल टुकडों में उमड़-घुमड़ सकते हैं और हल्की बारिश हो सकती है. अगले कुछ दिनों तक सिवान के प्रतापपुर में मौसम का मिज़ाज कुछ ऐसा ही रहने वाला है. आसमान भी हमारे साथ मातम मना रहा है." यह कहने वाले उस व्यक्ति ने अपना नाम तो नहीं बताया, लेकिन वह ग़ुस्से में था. उसने कहा- साहेब को लालू यादव ने धोखा दिया. उसने कहा, उन्होंने शहाबुद्दीन का शव उनके शहर में क्यों नहीं आने दिया. उन्हें किस चीज़ का डर था? अब उनकी क़ब्र में लगे पत्थर पर सिर्फ़ उनका नाम, पैदा होने की तारीख़, मरने के दिन और इस बात का ज़िक्र है कि वे कहाँ के थे. यह क़ब्र भी अब यहाँ की तमाम गुमनाम क़ब्रों की तरह एक कोने में खड़ी है. दफ़नाए जाने के एक दिन बाद क़ब्र पर बिखरी गुलाब की पंखुड़िया पीली पड़ गई हैं. आरजेडी के नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की देह अब दिल्ली की इस क़ब्रगाह का हिस्सा बन चुकी है. हर शाम शहाबुद्दीन के युवा पुत्र यहाँ आईटीओ पर मौजूद जदीद क़ब्रिस्तान अहले इस्लाम में आते हैं. हर दिन उनका एक घंटा अपने पिता की क़ब्र पर बीतता है. पूरे दिन दूसरे लोग भी आते रहते हैं.More Related News