
वैश्विक मुद्रास्फीति व अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की नई नीतियां भारतीय अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ सकती हैं
The Wire
अमेरिका में लगातार बनी रहने वाली उच्च मुद्रास्फीति भारत जैसे विकासशील देशों के आर्थिक प्रबंधन में बड़े व्यवधान का कारण बन सकती है.
ऐसे में जबकि दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं महामारी से पहले वाले स्तर पर आने के लिए जूझ रही हैं, दुनिया के विभिन्न हिस्सों के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की वैश्विक मुद्रास्फीति को लेकर अब तक की समझ बदलती दिख रही है- कि यह एक संक्रमणकालीन समस्या है.
उन्होंने यह स्वीकार करना शुरू कर दिया है कि वैश्विक मुद्रास्फीति का दौर लंबा चल सकता है. भारत में भारतीय रिजर्व बैंक के हिसाब से अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से सुधार के रास्ते में मुद्रास्फीति एक खतरा बनकर उभरी है.
जून महीने के अपने मौद्रिक नीति आकलन में इसने वैश्विक उत्पादों, खासकर ऊर्जा की बढ़ती कीमतों से मुद्रास्फीति के खतरे को स्वीकार किया था लेकिन साथ ही साथ एक तरह की आश्वस्ति भी प्रकट की थी कि मांग में कमी के चलते उत्पादक बढ़ रही लागत का भार उपभोक्ताओं पर नहीं डालेंगे.
लेकिन यह भार उपभोक्ताओं पर डाला जा रहा है, जिससे ऊर्जा से लेकर भोजन, धातु, पेंट, वस्त्र, साबुन, डिटर्जेंट, रसायन, निर्माण सामग्री तक ज्यादा महंगे हो गए हैं.