वे लोग जो भारतीय छात्रों को दिलाते हैं यूक्रेन में एमबीबीएस सीट
BBC
यूक्रेन के विश्वविद्यालयों के साथ बतौर कॉन्ट्रैक्टर काम करने वाले इन लोगों ने भारतीय छात्रों की जंग से बचकर भागने में भी अहम भूमिका निभाई है.
रूसी हमले के बाद यूक्रेन से भाग कर भारत लौटे हर छात्र के पास एक कहानी है. ये बंकर में रहने या बमबारी की आवाज़ों से घबराकर रात को जागने की नहीं, बल्कि यूक्रेन में उनके सूत्रधार, उनके कॉन्ट्रैक्टर की कहानी है.
किसी कहानी में कॉनट्रैक्टर हीरो हैं और किसी में विलेन लेकिन हैं हर कहानी में. और ये भी साफ है कि अच्छे और बुरे कॉनट्रैक्टर और उनके साथ अच्छे और बुरे रिश्ते, ये दोनों बातें ही यूक्रेन में पढ़ने के अनुभव को तय करती हैं.
कॉनट्रैक्टर एक बड़े सिस्टम की ड्राइविंग सीट पर बैठे हैं जो भारत के गली-मुहल्लों में काम कर रहे एजंट्स के संपर्क में आनेवाले भारतीय छात्रों को यूक्रेन के विश्वविद्यालयों तक लाते हैं, दाखिला दिलाते हैं और उसके बाद के छह साल तक वहां रहने, खाने की सुविधाओं के बीच उन्हें बांधे रखते हैं.
ये कॉन्ट्रैक्टर रसूख़दार हैं. कोविड महामारी के दौरान साल 2020 में इन्होंने घर जाने के लिए बेताब छात्रों के लिए चार्टर फ्लाइट्स का इंतज़ाम किया जिनकी टिकट की कीमत भारत सरकार की ओर से चलाई जा रही फ्लाइट से सस्ती भी थीं.
साल 2014 में क्राइमिया पर रूस के हमले के वक्त और अभी ताज़ा जंग के दौरान, कॉन्ट्रैक्टर्स ने छात्रों को बॉर्डर तक पहुंचाने के लिए बसें मुहैया करवाईं.