विपक्ष रूल नंबर 267 पर अड़ा तो सरकार 176 पर... समझें संसद में मणिपुर पर बहस कहां अटकी?
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विपक्षी दलों ने मणिपुर के मामले पर चर्चा को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को नोटिस दिया है. हालांकि लोकसभा में कोई झगड़ा नहीं है, लड़ाई राज्यसभा में है, जहां नियम 176 और 267 के तहत मणिपुर के हालातों पर चर्चा के लिए नोटिस दिए गए थे. विपक्ष और सरकार अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं.
मणिपुर में पिछले ढाई महीने से हिंसा का दौर जारी है. बेगुनाहों की हत्या, जलते घर, लुटती दुकानों के बीच 19 जुलाई को एक ऐसा वीडियो सामने आया, जिसने पूरे देश को शर्मसार कर दिया. इस मामले को लेकर मॉनसून सत्र के पहले दिन यानी 20 जुलाई को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ. लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में कामकाज नहीं हो सका. जहां संसदीय कार्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि विपक्ष जानबूझकर मणिपुर पर चर्चा नहीं चाहता है. वह बार-बार अपना रुख बदल रहे हैं और नियमों का हवाला दे रहे हैं, उन्होंने कहा कि केंद्र मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है, इस पर गृह मंत्री जवाब देंगे. वहीं विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान देने और पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर लंबी चर्चा की मांग कर रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि जब सरकार और विपक्ष चर्चा करना चाहते हैं तो पेच कहां फंस रहा है.
बता दें कि विपक्ष और सरकार के बीच पेच इस बात पर फंसा है कि मणिपुर पर चर्चा किस रूल के तहत हो. क्योंकि सरकार रूल नंबर 176 के तहत बहस करना चाहती है तो विपक्ष रूल 267 के तहत चर्चा करने की मांग पर अड़ा हुआ है.
कहां फंसा है पेच?
विपक्षी दलों ने मणिपुर के मामले पर चर्चा को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को नोटिस दिया है. हालांकि लोकसभा में कोई झगड़ा नहीं है, क्योंकि विपक्षी दलों ने नियम 193 के तहत नोटिस दिया है. जिस पर सरकार बहस के लिए सहमत हो गई है. लड़ाई राज्यसभा में है, जहां नियम 176 और 267 के तहत मणिपुर की स्थिति पर बहस के लिए नोटिस दिए गए थे. विपक्ष नियम 267 के तहत लंबी चर्चा की मांग कर रहा है, जबकि सरकार ने कहा कि वह केवल नियम 176 के तहत छोटी चर्चा के लिए सहमत है.
क्या है नियम 267?
राज्यसभा की नियम पुस्तिका (पेज 92) में नियम 267 को परिभाषित किया गया है. इसमें कहा गया है कि कोई भी सदस्य दिनभर के सूचीबद्ध एजेंडे को रोकते हुए सार्वजनिक महत्व के जरूरी मुद्दों पर चर्चा के लिए नोटिस प्रस्तुत कर सकता है. 1990 के बाद से रूल 267 का महज 11 बार बहस के लिए इस्तेमाल किया गया है. आखिरी बार इसका इस्तेमाल साल 2016 में नोटबंदी के लिए किया गया था, जब मोहम्मद हामिद अंसारी सभापति थे. इस नियम का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर बहस के लिए सभी कामों को रोक दिया जाता है. हालांकि नियम 267 के अलावा सरकार से सवाल पूछने और प्रतिक्रिया मांगने का सांसदों के पास एक और तरीका होता है. वे प्रश्नकाल के दौरान किसी भी मुद्दे से संबंधित प्रश्न पूछ सकते हैं, जिसमें संबंधित मंत्री को मौखिक या लिखित उत्तर देना होता है. कोई भी सांसद शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठा सकता है. हर दिन 15 सांसदों को शून्यकाल में अपनी पसंद के मुद्दे उठाने की अनुमति होती है. कोई सांसद इसे विशेष उल्लेख के दौरान भी उठा सकता है. राज्यसभा अध्यक्ष प्रतिदिन 7 विशेष उल्लेखों की अनुमति दे सकता है.
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