
विधानसभा चुनाव परिणाम: आशा और आशंका के बीच जनतंत्र कहां है
The Wire
जनादेश जब इस क़िस्म का हो कि मतदाताओं का एक तबका उसमें ख़ुद को किसी तरह शामिल न कर पाए, तो उसके मायने यही होंगे कि जनता खंडित हो चुकी है.
आशंका सच साबित हुई. आशा आकाशकुसुम बनकर रह गई. लेकिन जो एक के लिए आशंका है, वह दूसरे के लिए आशा है.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में क्रमशः भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी की जीत के घंटों के भीतर ही हज़ारों शब्द इनकी व्याख्या में खर्च किए जा चुके हैं. आशंका और आशा के दो समुदाय इस देश में बन चुके हैं. इसलिए इस जनादेश के एक दूसरे से बिलकुल विपरीत दो अर्थ निकाले जा रहे हैं.
यह बात जनतंत्र के लिए बहुत ख़तरनाक है. आम तौर पर जनादेश या बहुमत में समाज के सभी तबकों की आशा शामिल रहती है. लेकिन अगर ऐसा हो कि एक तबके को वह अपने ख़िलाफ़ लगने लगे, बल्कि उसे यह बार-बार बतलाया जाए तो चुनाव भले जनतांत्रिक लगे, उसका आशय उसके ठीक उलट हो जाता है.
जनादेश जब इस क़िस्म का हो कि मतदाताओं का एक तबका उसमें ख़ुद को किसी तरह शामिल न कर पाए, तो उसके मायने यही होंगे कि जनता खंडित हो चुकी है.