'वन नेशन-वन इलेक्शन' में विपक्ष को क्या खामियां दिख रही हैं, राह में क्या रोड़े हैं? 10 बड़े सवालों के जवाब
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केंद्र की मोदी सरकार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाए जाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ गई है. बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक देश, एक चुनाव के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है. इससे पहले मार्च में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को वन नेशन-वन इलेक्शन कमेटी की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं. देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के मुद्दे पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी ने ये रिपोर्ट तैयार की है. हालांकि, इसे लेकर विवाद भी शुरू हो गया है. विपक्षी दल, एक देश-एक चुनाव पर सहमत नहीं हैं और कमियां गिना रहे हैं. कुछ पार्टियां समर्थन में भी आई हैं और खुलकर कमेटी की रिपोर्ट का बचाव कर रही हैं. आइए सवाल-जवाब में समझते हैं कोविंद कमेटी के सुझाव लागू होने के फायदे और नुकसान?
कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह समेत आठ सदस्य हैं. 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' रिपोर्ट में कहा गया है कि हमने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया, इनमें 47 ने अपना जवाब दिया है. 15 राजनीतिक दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, 32 राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का समर्थन किया है. जबकि 15 ने इसका विरोध किया है.
कमेटी ने मार्च में राष्ट्रपति को सौंपी थी रिपोर्ट
कमेटी ने बताया कि राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने प्रस्ताव का विरोध किया. जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने इसका समर्थन किया. इस कमेटी ने मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपी थी.
1. प्रस्ताव में क्या है?
- देश में एक साथ चुनाव को दो चरणों में लागू किया जाएगा. पहले चरण में लोकसभा, विधानसभा चुनाव कराए जाएं. दूसरे चरण में 100 दिन बाद नगर निकाय और पंचायत चुनाव कराए जाएं. - सभी चुनाव के लिए एक ही वोटर लिस्ट तैयार की जाए. यानी अलग-अलग वोटर लिस्ट तैयार करने का झंझट खत्म हो जाएगा. अभी लोकसभा-विधानसभा के लिए अलग और नगर निकाय-पंचायतों के चुनाव में अलग वोटर लिस्ट तैयार होती है. - यदि केंद्र या राज्य सरकार अपना बहुमत खोती है या भंग होती है तो ऐसी स्थिति में बची हुई अवधि के लिए ही चुनाव कराए जाएं. - लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी कराए जाने पर विचार किया जाए. - अगर किसी विधानसभा का चुनाव किसी कारणवश एक साथ नहीं हो पाता है तो बाद की तारीख में होगा, लेकिन कार्यकाल उसी दिन समाप्त होगा जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होगा. - पूरे देश में विस्तृत चर्चा शुरू की जाए. एक कार्यान्वयन समूह का गठन किया जाए. - परामर्श प्रक्रिया में 80 प्रतिशत लोगों खासकर युवाओं ने इसका समर्थन किया.
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