
वक्फ बिल सपोर्ट करने का असर जेडीयू पर दिखने लगा, अब नीतीश कुमार के पास क्या ऑप्शन हैं
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वक्फ बिल का सपोर्ट नीतीश कुमार ने भले ही मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाये रखने के मकसद से बीजेपी के सपोर्ट के लिए किया हो, लेकिन उनके स्टैंड से मुस्लिम तबका नाराज है - और जेडीयू के अंदर से रुझान भी आने लगे हैं.
आंखों के सामने तेज धधकती आग खतरनाक तो होती है, लेकिन उससे भी खतरनाक हो सकता है किसी छोर से उठता हुआ धुआं.
वक्फ बिल के सपोर्ट के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के सामने फिलहाल ऐसी ही स्थिति बन गई है - जेडीयू की तरफ से चाहे जैसे भी दावे किये जायें, लेकिन वो हकीकत तो नहीं बदल सकते.
क्या नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी बचाये रखने, और आने वाले चुनाव में भी एनडीए का नेता बने रहने के मकसद से बीजेपी का सपोर्ट मिलता रहे, इसलिए किया है? लेकिन अमित शाह ने बिहार दौरे में ऐसा कोई संकेत तो दिया नहीं है. बल्कि, जिस तरीके से बीजेपी नेता बिहार में हुए काम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की योजनाओं की तारीफ कर रहे हैं, वो सब तो नीतीश कुमार के खिलाफ ही जाता हुआ लगता है. नीतीश कुमार के प्रभाव से भले ही जेडीयू के बड़े मुस्लिम नेता खामोश हैं, लेकिन वक्फ बिल को लेकर छोटे नेताओं का विरोध जारी है. कुछ मुस्लिम नेताओं ने तो इस्तीफा तक दे डाला है.
वक्फ बिल पर नीतीश के स्टैंड के रुझान तो आने ही लगे हैं
वक्फ बिल के सपोर्ट के मुद्दे पर जेडीयू के मुस्लिम नेताओं का इस्तीफा, असल में, नीतीश कुमार की इफ्तार पार्टी के बहिष्कार का ही अगला कदम है.
जेडीयू से इस्तीफा देने वालों में कोई बड़ा नाम तो नहीं शामिल है, लेकिन ये कोई मामूली बात भी नहीं कही जा सकती है. जैसे चुनावों में हार जीत मायने नहीं रखती, वैसे ही विरोध के लिए हमेशा किसी की हैसियत ही असरदार नहीं होती - एक छोटा कदम कब कारवां बन जाता है, ऐसे तमाम उदाहरण हैं. इस्तीफा देने वाले नेताओं में शामिल हैं - अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मो. शाहनवाज मलिक, प्रदेश महासचिव मो. तबरेज सिद्दीकी, भोजपुर के जेडीयू नेता मो. दिलशान राईन और जेडीयू के पूर्वी चंपारण जिला चिकित्सा प्रकोष्ठ का प्रवक्ता कासिम अंसारी. जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव गुलाम रसूल बलियावी भी नाराज दिखे हैं, और जेडीयू के एमएलसी गुलाम गौस की भी नाराजगी सामने आ चुकी है.

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