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वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पर भी क्या CAA जैसा राजनीतिक तूफान खड़ा होगा?
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ऐसी चर्चा है कि मानसून सत्र में ही वक्फ बोर्ड में सुधार के लिए सरकार बिल पेश कर सकती है. पर जिस तरह विपक्ष माहौल तैयार कर रहा है उससे तो यही लगता है मुस्लिम समुदाय सीएए से भी तगड़ा विरोध कर सकता है.
एक अनुमान के मुताबित देश में सेना और रेलवे के पास जितनी जमीन है, उससे थोड़ा ही कम वक्फ बोर्ड के पास है. करीब 8.7 लाख की संख्या में रजिस्टर्ड जमीन बोर्ड की है, जिसका एरिया करीब 9.4 लाख एकड़ के आस पास है. कहने का मतलब है कि वक्फ बोर्ड को हल्के में नहीं लिया जा सकता. कहा जा रहा है कि सरकार इस हफ्ते वक्फ बोर्ड संशोधन बिल लाकर बोर्ड के असीमित अधिकारों में कटौती कर सकती है. सीएए जैसा यह मामला भी देश के मुस्लिम अल्फसंख्यकों से जुड़ा हुआ है. जाहिर है कि इसका विरोध होना तय है. हो सकता है जिस तरह का विरोध सीएए को लेकर किया गया था उससे भी अधिक तगड़ा विरोध इस बार हो. 2019 में जब सीएए कानून को संसद ने पारित किया तो इतना विरोध हुआ कि सरकार करीब चार साल उसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी. सोचने वाली बात यह है कि सीएए में जब देश के मुसलमान पर कोई सीधा असर नहीं था, तब इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया गया. वक्फ बोर्ड से तो देश के लाखों मुसलमान जुड़े हुए हैं. अरबों-खरबों की संपत्ति की बात है. जाहिर है कि विरोध की तपिश इस बार कुछ ज्यादा ही होने वाली है. शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में वक्फ अधिनियम में 40 संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है. संसद में संशोधन विधेयक पारित होने के बाद वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियां काफी कम होने की तो बात हो रही है, पर कोई भी उन सुधारों की बात नहीं कर रहा, जो अल्पसंख्यक समुदाय के लिए जरूरी हैं.
वक्फ बोर्ड में जरूरी सुधारों का विरोध क्यों?
बताया जा रहा है कि 2009 तक वक्फ बोर्ड के पास 4 लाख एकड़ तक की 3 लाख रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियां थीं. महज 13 साल में वक्फ की जमीन दोगुनी हो गई. आज की तारीख में 8 लाख एकड़ भूमि में फैली 8 लाख 72 हजार 292 से ज्यादा रजिस्टर्ड वक्फ की अचल संपत्तियां हैं. यह कैसे हुआ ? 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 1995 के बेसिक वक्फ एक्ट में संशोधन लाया और वक्फ बोर्डों को और ज्यादा अधिकार दिए थे. वक्फ बोर्डों को संपत्ति छीनने की असीमित शक्तियां देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. बोर्ड का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का संरक्षण और उनका सही प्रबंधन सुनिश्चित करना है, पर इस कानून के बनने के बाद वक्फ बोर्ड कुछ और खेल खेलने लगा. बताया जाता है कि 2013 में हुए संशोधन में वक्फ बोर्ड को यह अधिकार दे दिया गया कि वक्फ बोर्ड जिस संपत्ति को कह देगा कि यह वक्फ की संपत्ति है फिर उसे कोई नहीं बचा पाएगा. क्योंकि बोर्ड के खिलाफ कोर्ट को भी सुनवाई का अधिकार नहीं दिया गया है 2013 के संशोधन में. जाहिर है कि अगर नए वक्फ बोर्ड बिल में इस कानून को संशोधित किया जाता है तो उसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए.
मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोग खुद सवाल कर रहे हैं कि सरकार वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन क्यों नहीं कर रही है? बोर्ड में सिर्फ शक्तिशाली लोग ही शामिल हैं. भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जा रहे हैं. पारदर्शिता के लिए व्यवस्था किए जाने की मांग की जा रही है. यूपी सरकार के पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता मोहसिन रजा कहते हैं कि पूरे देश और समाज की मांग थी कि ऐसा कानून आना चाहिए. वक्फ बोर्ड ने 1995 के कानून का बहुत दुरुपयोग किया है. वक्फ बोर्डों ने निरंकुश होकर अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया है. अगर कोई संपत्ति गलत ढंग से वक्फ संपत्ति में दर्ज हो गई तो उसको कैसे निकाला जाएगा. वक्त बोर्ड कोई अदालत नहीं है जो फैसला करे कि वक्फ की संपत्ति कौन सी है और कौन सी नहीं है. निर्णय लेने का अधिकार हमारे अधिकारियों को है. यह संशोधन इसीलिए लाया जा रहा है कि अगर कोई शिकायत है तो उसकी सुनवाई हमारे अधिकारी करेंगे और अधिकारी बताएंगे कि वक्फ बोर्ड क्या कार्रवाई करे.
ओवैसी जैसे ताकतवर नेताओं की जागीर बन गई है वक्फ की संपत्ति, विरोध तो करेंगे ही
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान कर दिया और उन्होंने इसे इस्लामी कानून के तहत वक्फ का बना दिया. यह जरूरी है कि संपत्ति का उपयोग सिर्फ उन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए, जिनके लिए इसे हमारे पूर्वजों ने दान किया था. पर यहां तो गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए इतने भारी भरकम बोर्ड के पास पैसे ही नहीं हैं. क्योंकि ताकतवर मुसलमानों ने न केवल बोर्ड पर कब्जा जमाया हुआ है बल्कि वक्फ की जमीनों पर उन्हीं का कब्जा है. वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद ने सरकार की मंशा सही बताते हुए दावा किया कि नया बिल अगर ढंग से लागू हो सका तो माइनोरिटी को काफी फायदा होगा. जावेद कहते हैं कि तेलंगाना में 3 हजार करोड़ या इससे कुछ ज्यादा की प्रॉपर्टी पर ओवैसी का काम हो रहा है. ये प्रॉपर्टी वक्फ की है. एक्ट कहता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्फ की दौलत लीज पर नहीं ली जा सकती. लेकिन इसे फॉलो नहीं किया जा रहा. साथ ही बदले में वक्फ को बहुत नॉमिनल किराया मिलता है, जबकि नियम से ये रेंट बाजार के हिसाब का होना चाहिए.
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