लॉकडाउन: टेस्टिंग, वेंटिलेटर और टीका...1 साल में कोरोना से लड़ने में कई गुना ताकतवर हुआ इंडिया
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25 मार्च 2020 को पीएम मोदी ने जब 21 दिनों के नेशनल लॉकडाउन की घोषणा की तो उनको पता होगा कि देश में हेल्थ के बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के अभाव में कोरोना जैसी महामारी से लड़ाई मुश्किल ही नहीं असंभव है. याद करिए तबतक कोरोना के सामने दुनिया की महाशक्तियां सरेंडर कर चुकी थी.
लॉकडाउन को लागू हुए एक साल गुजर गया. आंकड़ों के आईने में देखें तो कोरोना से जंग में भारत ने लंबी दूरी तय की है. आज भारत के पास वैक्सीन है, टेस्टिंग किट है, पीपीई है, वेंटिलेटर है, अस्पतालों की तैयारी है, सरकार की तैयारी है, लेकिन बावजूद इसके कोरोना वायरस पूरी ताकत के साथ मौजूद है. आज भी हम ये कहने की हालत में नहीं हैं कि हमने कोरोना पर काबू पा लिया है. हालांकि ये दावा करने की हालत में दुनिया के विकसित देश भी नहीं हैं. दरअसल कोरोना 'म्यूटेशन', 'वैरिएशन' जैसे जैविक विशेषताओं से लैस ये बीमारी अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. 25 मार्च 2020 को देश में 90 नए केस सामने आए थे, आज उससे हजारों गुणा ज्यादा 50 हजार से ज्यादा नए केस देशभर में आए हैं. 25 मार्च 2020 को देशभर में कुल 681 केस थे, आज देशभर में कुल केसों की संख्या 1 करोड़ 17 लाख से ज्यादा हो गई है.सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
देश का सबसे तेज न्यूज चैनल 'आजतक' राजधानी के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में तीन दिवसीय 'साहित्य आजतक' महोत्सव आयोजित कर रहा है. इसी कार्यक्रम में ये पुरस्कार दिए गए. समारोह में वरिष्ठ लेखकों और उदीयमान प्रतिभाओं को उनकी कृतियों पर अन्य 7 श्रेणियों में 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान' से सम्मानित किया गया.
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हिंदी साहित्य के विमर्श के दौरान आने वाले संकट और चुनौतियों को समझने और जानने की कोशिश की जाती है. हिंदी साहित्य में बड़े मामले, संकट और चुनने वाली चुनौतियाँ इन विमर्शों में निकली हैं. महत्वपूर्ण विचारकों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं. हिंदी साहित्यकार चन्द्रकला त्रिपाठी ने कहा कि आज का विकास संवेदन की कमी से ज्यादा नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति प्रेम के लिए वस्तुओं की तरफ झूक रहा है, लेकिन व्यक्ति के प्रति संवेदना दिखाता कम है. त्रिपाठी ने साहित्यकारों के सामने मौजूद बड़े संकट की चर्चा की. ये सभी महत्वपूर्ण छोटी-बड़ी बातों का केंद्र बनती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं.