लियाक़त-नेहरू समझौता: जब पाकिस्तान और भारत ने अल्पसंख्यकों की रक्षा की ठानी..
BBC
1950 में पाकिस्तान और भारत में ऐसा माहौल हो गया था जब लगा कि तीन साल पहले स्वतंत्र हुए दोनों देशों में युद्ध छिड़ने वाला है. और ऐसे में दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के मन में आशंकाएँ जन्म लेने लगीं. मगर फिर एक समझौता हुआ जिसने दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के लिए नई उम्मीद बँधाई.
"साल 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन से पहले, 30 प्रतिशत से भी अधिक मुस्लिम आबादी वाले पश्चिम बंगाल का प्रमुख शहर कलकत्ता (कोलकाता), उतना ही मुसलमानों का शहर था जितना हिन्दुओं का था."
अन्विषा सेन गुप्ता कोलकाता में इतिहास पढ़ाती हैं. वह लिखती हैं कि बंगाल की मुस्लिम लीग का मानना था कि कलकत्ता की शान पूर्वी बंगाल में बड़े पैमाने पर होने वाला पटसन का व्यापार है. इसलिए, उन्होंने बंगाल बॉउंड्री कमीशन से मांग की कि कलकत्ता को पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किया जाए.
अगर यह संभव नहीं है, तो मुस्लिम लीग ने सुझाव दिया कि कलकत्ता को पूर्व और पश्चिम बंगाल का संयुक्त शहर बनाया जाए, यानी पाकिस्तान और भारत का संयुक्त शहर घोषित किया जाए.
15 अगस्त 1947 को कलकत्ता इतना शांतिपूर्ण था कि यह काल्पनिक सा लगता था. कलकत्ता में अख़बार गार्डियन के विशेष संवाददाता ने लिखा, "आज रात कलकत्ता में हिंदू और मुसलमान एक साथ आज़ादी का जश्न मना रहे हैं." हालांकि ये ख़ुशनुमा माहौल बहुत कम दिनों तक रहा और कुछ हफ़्तों के अंदर यह शहर आग की चपेट में आ गया.