'लाडली लहर' ने लगाई शिवराज की नैया पार, कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस हार का गुनहगार!
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कमलनाथ के मुकाबले शिवराज पूरे राज्य में पॉपुलर लीडर के तौर दिखाई दिए. विधायकों के खिलाफ जरूर लोकल एंटी इनकंबेंसी दिखी लेकिन जैसी बात की जा रही थी शिवराज के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं दिखाई दी. वहीं, प्रदेश में भाजपा ने अपने सभी पोस्टर्स-बैनर में मोदी के चेहरे को ही प्रमुखता दी.
विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा को जोरदार जीत हासिल हुई वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस ने सत्ता का खाता खोल लिया है. यह उम्मीद जताई जा रही थी कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आएगी लेकिन तीनों राज्यों में भाजपा की जीत ने विश्लेषकों को जबर्दस्त तरीके से चौंका दिया है. आइए, जानते हैं कि आखिर इन नतीजों के पीछे किन फैक्टर्स का हाथ रहा. सबसे पहले मध्य प्रदेश पर डालते हैं एक नज़र...
मामा को सत्ता में ले आईं 'लाडली बहनें'... 1. लाडली बहनों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर से मिला फायदा- लाडली बहना योजना के तहत शिवराज सरकार ने प्रदेश की एक करोड़ 31 लाख महिलाओं को हर महीने 1250 रुपए दिए. यह राशि डायरेक्ट उनके खाते में डाली गई. इसे बढ़ाकर 3 हजार रुपये तक करने की भी घोषणा की गई. ऐसा माना जा सकता है कि महिलाओं ने इसी योजना की बदौलत शिवराज सरकार के पक्ष में बढ़-चढ़कर मतदान किया. महिलाओं का भाजपा के पक्ष में किया गया, यही 4 फीसदी अतिरिक्त मतदान लगातार पिछड़ती दिखाई दे रही भाजपा को अंतिम क्षणों में इस योजना की बदौलत फ्रंट रनर बना गया. इस अकेले फैक्टर ने मध्य प्रदेश में चुनावों का परिणाम बदल दिया. इसके अलावा तीर्थदर्शन, लाडली लक्ष्मी...कन्यादान योजना...आयुष्मान योजना...और अधिकतर में डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर का इंपैक्ट...इन सभी के सम्मिलित प्रभाव से जो अंडर करंट क्रिएट हुआ उसे कांग्रेस समझने में पूरी तरह नाकामयाब रही. उसे भरोसा था कि शिवराज सरकार के खिलाफ जनता में जो एंटी इनकंबेंसी पनप रही है वो उसे आसानी से सत्ता में ला देगी. यही ओवर कॉन्फिडेंस कांग्रेस पर भारी पड़ा.
2. धर्म-हिन्दुत्व का दांव कर गया काम- भाजपा सरकारों का जोर हिन्दू धार्मिक स्थलों को आध्यात्मिकता के साथ साथ आधुनिकता का कलेवर देने पर रहा. उज्जैन कॉरिडोर इसी का उदाहरण है. इसके अलावा शिवराज ने राज्य के चार मंदिरों- सलकनपुर में देवीलोक, ओरछा में रामलोक, सागर में रविदास स्माकर और चित्रकूट में दिव्य वनवासी लोक के विस्तार और स्थापना के लिए 358 करोड़ रुपये का बजट दिया है. इन सभी योजनाओं ने हिन्दुत्व के पक्ष में माहौल बनाया, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला. इसके अलावा कांग्रेस के जाति गणना वाले दांव के खिलाफ भाजपा की `हिन्दुत्व काट` बहुत सफल दिखाई दी.
3. काम आ गई आरएसएस कैडर की सक्रियता- मध्य प्रदेश आरएसएस का गढ़ रहा है. राज्य लंबे समय से हिदुत्व की प्रयोगशाला भी रहा है. पूरे राज्य में आरएसएस कैडर जबर्दस्त तरीके से सक्रिय है. लोगों को प्रभावित करने और अपने पक्ष के वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाने में इस कैडर की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. भाजपा के कांग्रेस से पीछे रह जाने की भविष्यवाणी के बाद यह कैडर जबर्दस्त तरीके से सक्रिय हुआ. इसकी सक्रियता की बदौलत गांव-शहर के भाजपा के परंपरागत वोटर बाहर निकले, जो लगातार हार की तरफ बढ़ती भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब रहे. ऐसा माना जा सकता है कि यह पहली बार हुआ है कि आरएसएस कैडर ने लगभग पूरी तरह से भाजपा कार्यकर्ता बनकर ही काम किया. सामान्य तौर पर आरएसएस कैडर सीधे तौर पर इतनी राजनीतिक सक्रियता नहीं दिखाता है, बल्कि इनडायरेक्ट तरीके से वोटर को इन्फ्लूएंस करने काम करता है.
4. आदिवासी वर्ग बना गया तारणहार- राज्य में आदिवासियों के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. पिछले चुनावों में जहां भाजपा को मात्र 16 सीटें मिली थीं वहीं, कांग्रेस 31 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इसी भरोसे 2018 में कांग्रेस की सरकार भी बनी थी. इसी से सबक लेते हुए शिवराज सरकार ने इस वर्ग के लिए योजनाओं की झड़ी लगा दी थी. बिरसा मुंडा जयंती, रानी कमलापति के नाम से भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम, टंट्या भील चौराहा, आदिवासी पंचायतों में पेसा एक्ट लागू करने जैसी योजनाओं पर लगातार काम किया गया. कांग्रेस यहां भी उनके परंपरागत समर्थन पर भरोसा करके बैठी रही. उसकी इस वर्ग में सक्रियता बहुत कम रही.
5. सही साबित हुआ केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों को उतारने का फैसला- मंत्रियों-सांसदों से उम्मीद की गई कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर आसपास की सीटों को भी जीतने में मदद करेंगे. एक्जिट पोल के रीजन वाइज़ परिणामों ने भी बताया कि जिन क्षेत्रों में इन्हें खड़ा किया गया वहां बहुत सी सीटों का परिणाम भाजपा के पक्ष में आया. यानी इन्हें खड़े करने का दांव काफी हद तक सफल माना जा सकता है.
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