
‘लव जिहाद’ क़ानून का सफ़र: सबूतों के बगैर एक झूठ को सच बनाने की अनवरत कोशिश
The Wire
बीते कुछ समय में देश के कई राज्यों में कथित तौर पर मुस्लिम पुरुषों के हिंदू महिलाओं से शादी करने की बढ़ती घटनाओं के आधार पर 'लव जिहाद' से जुड़े क़ानून को जायज़ ठहराया गया है. लेकिन क्या इन दावों का समर्थन करने के लिए कोई वास्तविक सबूत मौजूद है?
‘लव जिहाद’ के झूठ का चाहे कितनी बार वध करके उसे दफना दिया जाए, लेकिन यह बार-बार जी उठता है. ‘अपने धर्म की शक्ति बढ़ाने के एजेंडा के तहत दूसरे धर्मों के लोगों का उनके धर्म में धर्मांतरण कराने के लिए लोग अपने धर्म के बारे में गलत जानकारी देकर दूसरे धर्म की लड़कियों से शादी करते हैं.’ ‘कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें लोगों ने उस धर्म की लड़की से शादी करने के लिए ही उसके धर्म में धर्मांतरण कराया और फिर शादी के बाद उन्होंने लड़की का धर्मांतरण अपने धर्म में करवा दिया.’ ‘यह स्पष्ट है कि एक खास धर्म की लड़कियों को दूसरे धर्म में धर्मांतरित करने की एक सुनियोजित कोशिश की जा रही है. यह भी स्पष्ट है कि यह ऐसा रिपोर्ट में उल्लिखित कुछ संगठनों की मदद से किया जा रहा है.’ ‘राज्य द्वारा ऐसी कोई सामग्री पेश नहीं की गई है जो यह दिखा सके कि राज्य में हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता कानून को लागू करने से पहले या बाद में धर्मांतरण के कारण लोक-व्यवस्था पर कोई नकारात्मक असर पड़ा है. वास्तविकता में, आज की तारीख तक इस कानून के तहत सिर्फ एक मामला दर्ज किया गया है.’ ‘हमारे सामने ऐसी घटनाएं आई हैं, जिनमें दूसरे धर्मों के लोगों को अपने धर्म में परिवर्तित करके अपने धर्म की संख्या बढ़ाने के एजेंडा के तहत लोग अपने धर्म के बारे में झूठ बोलकर दूसरे धर्मों की लड़कियों से शादी करते हैं और ऐसी लड़कियों से शादी रचा लेने के बाद, उन्हें अपने धर्म में धर्मांतरित करवा देते हैं. ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें लोग सिर्फ उस धर्म की लड़की से शादी के मकसद से दूसरे धर्मों में धर्मांतरित हो जाते हैं और शादी के बाद वे उस लड़की को अपने धर्म में धर्मांतरित करवा देते हैं.’ ‘हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी शफीन जहां बनाम अशोकन केएम एवं अन्य और अमन बेग बनाम मध्य प्रदेश राज्य तथा अन्य वाली रिट याचिका में ऐसी घटनाओं का न्यायिक संज्ञान लिया था.’ ‘साजिश वाले आयाम को साबित नहीं किया जा सका. जांच दल को इन लड़कों (आरोपियों) के पीछे किसी संगठन का हाथ भी नहीं मिला. साथ ही, उनकी कोई विदेशी फंडिंग भी नहीं हुई थी.’ ‘इस कानून में किया गया सजा का प्रावधान इसे रोकने के हिसाब से उतने पर्याप्त नहीं हैं और इसलिए उत्तराखंड जैसे कुछ दूसरे राज्यों की तर्ज पर पर्याप्त सजा का प्रावधान किया जाना जरूरी है. साथ ही सिर्फ धर्मांतरण के लिए की जाने वाली शादी पर नियंत्रण रखने के लिए भी कोई प्रावधान नही है. इसके अलावा यह कानून धर्मांतरण में शामिल संस्था या संगठन को सजा देने का भी प्रावधान नहीं करता है.’
रक्तबीज रूपी यह राक्षस बार-बार हिंदुत्ववादी शक्तियों, कार्यपालिका और न्यायपालिका के गठजोड़ से फिर से उठ खड़ा होता है. 2023 की शुरुआत तक यह एक बार फिर से लौटने की मुनादी कर चुका है.
इस बार इसके पीछे कई आयामी कोशिशों का हाथ है, जिसकी शुरुआत मार्च 2022 में हरियाणा में नए धर्मांतरण कानून से हुई. इसके बाद 30 सितंबर को कर्नाटक में प्रोटेक्शन ऑफ फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट (धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा कानून), 2022 लाया गया. साल के अंत में उत्तराखंड के दमनकारी उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट (धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा कानून), 2018 को और ज्यादा सख्त बनाने पर उत्तराखंड के राज्यपाल ने मुहर लगा दी. महाराष्ट्र कैबिनेट ने अंतरधार्मिक शादियों और संबंधों की जासूसी करने वाली अधिसूचना जारी की और अंत में सुप्रीम कोर्ट भाजपा के एक पेशेवर याचिकाकर्ता द्वारा चौथी बार दायर एक याचिका पर सुनवाई करने के लिए पूरी तरह से उत्सुक नजर आया.
वर्तमान में ‘लव जिहाद’ कानूनों वाले राज्यों की संख्या 11 है, लेकिन इनकी गिनती रख पाना मुश्किल होता जा रहा है.