
लगातार चुनावी हार से पस्त पड़ी कांग्रेस को आगामी चुनौतियों के लिए व्यापक बदलाव की ज़रूरत है
The Wire
जी-23 के बैनर तले असंतुष्ट खेमे के पुराने वफ़ादार नेताओं के साथ सोनिया गांधी से संवाद की कड़ियां भले ही जुड़ गई हों पर लाख टके का सवाल यह है कि बीच का रास्ता निकालने के फार्मूलों से क्या कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर पैदा हुआ संकट टल सकेगा.
विगत कई सालों से केंद्र व राज्यों में लगातार चुनावी हार से पस्त पड़ी कांग्रेस को आगामी चुनौतियों का मुकाबला करने निश्चित ही किसी बहुत बड़ी सर्जरी की जरूरत है. ऐसे हालात में कांग्रेस में फिर से प्राण फूंकने के लिए पीके यानी प्रशांत किशोर का चुनावी रणनीतिक कौशल धरातल पर कितना कारगर हो सकेगा, यह जानने समझने को अभी इंतजार करना होगा.
सबसे बड़ा काम है कि कांग्रेस में नेतृत्व के रवैये से नाखुश पुराने नेताओं का पार्टी की मुख्यधारा में लाना व दिशाहीनता के आगोश में लिपटी पार्टी को देश के युवाओं की पार्टी बनाना. इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले मौजूदा पार्टी कैडर आत्मबल और आंतरिक विश्वास की लौ को फिर से जलाना.
कांग्रेस के समक्ष अखिल भारतीय चुनौती यह भी है कि भाजपा विरोधी तमाम क्षेत्रीय दलों के बीच प्रतिस्पर्धा को मिटाना और चुनावी टकराव से पैदा हुई खाइयों में सामंजस्य बिठाना. यह जरूरी इसलिए है ताकि 2024 के पहले समान वैचारिक सोच के आधार पर एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर भाजपा व संघ परिवार के विस्तार पर नकेल कसने को बड़ी सोच का राष्ट्रीय विकल्प तैयार करना.
कांग्रेस ऐसे विकल्प का नेतृत्व कर सकेगी या नहीं ऐसे सवालों के जवाब आगे चलकर पीके को अपने तरकश से निकालने होंगे.