लखीमपुर खीरी हिंसा: जीने-मरने के सवालों पर नहीं, तो कब की जानी चाहिए राजनीति
The Wire
जो लोग विपक्ष पर राजनीति करने की तोहमत मढ़ रहे हैं, वे भी एक ख़ास तरह की राजनीति ही कर रहे हैं. जब वे किसी भी तरह अप्रिय सवालों को टालने की हालत में नहीं होते, तो चाहते हैं कि वे पूछे ही न जाएं!
लखीमपुर खीरी के तिकुनिया में गत तीन अक्टूबर को जो कुछ हुआ, उसे लेकर भारतीय जनता पार्टी के विरोधी दलों की सक्रियता के बाद कई हलकों में यह सवाल बार-बार और कुछ ज्यादा ही जोर देकर पूछा जाने लगा है कि वे इस मसले पर इतनी राजनीति क्यों कर रहे हैं?
पूछने वाले कई महानुभावों को इतना भी याद नहीं रह गया है कि अभी कल तक वे इन्हीं दलों को मुर्दा बताकर आरोप लगा रहे थे कि वे ठीक से विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रहे. कई अन्य तो इस निष्कर्ष तक भी जा पहुंचे हैं कि इन दलों की इस राजनीति का एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम करना है. अपने इस निष्कर्ष पर जोर देते हुए वे कुछ ऐसा जता रहे हैं, जैसे इन दलों का प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को बदनाम करना राजनीति करने से भी बड़ा अपराध हो!
गत बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी लखीमपुर खीरी जा रहे थे, तो पत्रकारों ने उनसे भी पूछा कि इस मामले पर राजनीति क्यों की जा रही है?
राहुल ने इसका जवाब देते हुए कम से कम दो काबिल-ए-गौर बातें कहीं. पहली: राजनीति लोकतंत्र में नहीं तो और किस सत्ता व्यवस्था में की जाएगी? और दूसरी: ऐसे सवाल पूछने वाले पत्रकारों को खुद भी आईना देखना और समझना चाहिए कि राजनीति करने का अपराध तानाशाही में वर्ज्य होता है, लोकतंत्र में नहीं और किसी अत्याचार के पीड़ितों पर दबाव बनाना राजनीति करना है तो पत्रकारों को भी उसे बरतना चाहिए, क्योंकि यह उनके कर्तव्य का हिस्सा है.