
रज़ा का पुनर्दर्शन: आधुनिक विश्व-कला में भारतीय उपस्थिति
The Wire
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: रज़ा कहते थे कि चित्र कैसे बनाए जाएं यह कौशल उन्होंने फ्रांस से सीखा पर क्या चित्रित करें यह भारत से. वे दो संस्कृतियों के बीच संवाद और आवाजाही का बड़ा और सक्रिय माध्यम बने. उसी फ्रांस में उनकी अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी होना एक तरह से उनकी दोहरी उपस्थिति का एहतराम है.
फरवरी की ठंड है. यों भी पेरिस में फरवरी साल में आम तौर पर सबसे ठंडा महीना माना जाता है. पर रोमांच की गरमाहट भी है. यहां बड़ी संख्या में रज़ा के प्रशंसक और प्रेमी, उनकी कला के कई संग्रहकर्ता, कई कलाविद्, कुछ हिंदी युवा लेखक, साहित्य और ललित कला के कर्म नामचीन लोग, कलावीथिकाओं के कुछ प्रतिनिधि, अंतरराष्ट्रीय ऑक्शन हाउसेज़ के विशेषज्ञ, भारत के कई कलालोचक और पत्रकार सब एकत्र हुए हैं.
सैयद हैदर रज़ा की अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी के सेंटर द पाम्पिदू की गैलरी 4 में 14 फरवरी को शुभारंभ के अवसर पर भारतीय आधुनिक कला जगत की यह बड़ी परिघटना है. शायद किसी और भारतीय चित्रकार की इतनी बड़ी एकल प्रदर्शनी फ्रांस या विदेश में कहीं भी नहीं हुई. इसलिए यह आधुनिक विश्व-कला में भारतीय उपस्थिति और शिरकत की मान्यता भी है.
रज़ा की आधुनिकता के रूपायन में फ्रांस की बड़ी भूमिका है. बरसों तक वे पेरिस स्कूल के एक मान्य चित्रकार थे. फिर उन्होंने अपने लिए भारत की परंपरा और कुछ मूल अभिप्रायों की ओर मुड़कर उनका रंगसंधान शुरू किया और वे ‘बिंदु’ तक पहुंचे.
वे कहते भी थे कि चित्र कैसे बनाए जाएं यह कौशल उन्होंने फ्रांस से सीखा पर क्या चित्रित किया जाए यह भारत से. वे दो संस्कृतियों के बीच संवाद और आवाजाही का एक बड़ा और सक्रिय माध्यम बने. उसी फ्रांस में उनकी अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी होना एक तरह से उनकी दोहरी उपस्थिति का एहतराम है- फ्रेंच और भारतीय एक साथ.