रेत समाधि: हिंदी साहित्य की बंधी-बंधाई परिपाटी को चुनौती देता उपन्यास
The Wire
पुस्तक समीक्षा: हिंदी की अमूमन लिखाइयों में किसी नए क्राफ्ट, नए शिल्प या बुनाई के खेल कम ही होते हैं. लेकिन इस किताब को सब बंधन को तोड़ देने के बाद ऐसे लिखा गया है जैसे कि मन सोचता है.
(मूल रूप से 5 अगस्त 2018 को प्रकाशित हुए इस लेख को 27 मई 2022 को ‘रेत समाधि’ के डेज़ी रॉकवेल द्वारा किए अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिलने के अवसर पर पुनर्प्रकाशित किया गया है.)
कोई किताब आपको पुराने दिनों की दुनिया में झम्म से ले जाए, वही दरवाज़ा, वही लड़की-लड़कौरी-सी अम्मा, जिनके बूढ़े बदन में पंद्रह साला लड़की बसे. जो चलते न चलते झपाझप कूदने-उड़ने लगे और आप अम्मा बन जाएं और अम्मा बन जाए किशोरी. इस उलट झापे में जीवन रिवाइंड हो, कि चलो एक बार फिर बीतते हैं, कि पहली दफा कुछ चूक-सी रह गई थी, कुछ जल्दीबाज़ी भी, अब इस बार ज़रा फिर से करते हैं जीवन के हिसाब-किताब.
रेत समाधि उपन्यास है जिसका शिल्प बंधे-बंधाए लीक को अनावश्यक करता एक सरल प्रवाह में बहता है. इसकी फॉर्म कहानी और पात्र के परे है, घटनाओं और संवाद के परे है. पात्र अगर हैं तो अपनी सांकेतिक उपस्थिति में, घटनायें संदर्भ के तौर पर, संवाद है तो एकालाप के रूप में और उन सब को लेकर एक कैनवस रंगा गया है.
छोटी रोज़मर्रा की घटनाओं और अनूठे बिंब की उंगली पकड़ मन के बीहड़ गहरे अतल में उतर जाने की कथा है, जहां कभी आसमान है, घर है, चिड़िया है, तो कभी अंधेरा, बेचैनी और हाहाकार. कभी दुख, तकलीफ है…