राही मासूम रज़ा: 'मेरा नाम मुसलमानों जैसा है'
BBC
हिन्दी साहित्य में कालजयी रचना देने वाले और महाभारत को पर्दे पर उतारने वाले डॉक्टर राही मासूम रज़ा की 95वीं जयंती पर उनकी शख़्सियत को याद कर रहे हैं रेहान फ़ज़ल.
बात ग़ालिबन 1976 की है. राही मासूम रज़ा लखनऊ आए हुए थे. उन्हें 'मिली' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का पुरस्कार मिला था. वो किसी होटल में न ठहर कर अपने भांजे नदीम हसनैन के घर पर रुके हुए थे. इमर्जेंसी के दौरान कुछ पत्रकारों और लेखकों को छोड़कर सारे लोग उस समय की सरकार की जी हज़ूरी में लगे हुए थे. 'फ़िल्म राइटर्स असोसिएशन' ने भी इंदिरा गांधी और इमर्जेंसी के समर्थन में एक प्रस्ताव पास करवाने की कोशिश की. राही मासूम रज़ा अकेले लेखक थे जिन्होंने इसका विरोध किया. नदीम हसनैन बताते हैं, "लेखकों की कोशिश थी कि इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास किया जाए. कई लोग जो उससे सहमत नहीं थे या तो ख़ामोश रहे या ग़ैर-हाज़िर हो गए लेकिन राही वाहिद शख़्स थे, जिन्होंने उसे मानने से साफ़ इनकार कर दिया."More Related News