
राष्ट्रीय प्रतीक विवाद: इतिहासकार बोले- ‘आक्रामक शेरों’ में अशोक के मूल चिह्न के सार का अभाव
The Wire
नए संसद भवन की छत पर स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को लेकर बहस जारी है. कुछ इतिहासकार इस बात से निराश हैं कि इसमें सम्राट अशोक के मूल चिह्न के सार का अभाव है, जिसमें शेरों को ‘रक्षक’ के रूप में दर्शाया गया है. उन्होंने सवाल उठाया है कि नए प्रतीक में शेरों के दांत दिखाकर यह सरकार किस तरह का संदेश देना चाहती है. क्या आप भारत को एक ‘शांतिपूर्ण देश’ से ‘आक्रामक राष्ट्र’ में तब्दील करना चाहते हैं.
नई दिल्ली: ऊर्जावान या आक्रामक? नए संसद भवन की छत पर स्थापित किए गए राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को लेकर बहस जारी है. कुछ इतिहासकार इस बात से निराश हैं कि इसमें सम्राट अशोक के मूल चिह्न के सार का अभाव है, जिसमें शेरों को ‘रक्षक’ के रूप में दर्शाया गया है. वहीं, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि दोनों में अंतर बहुत कम है और कला के दो हिस्से हूबहू एक जैसे नहीं हो सकते.
बीते 11 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनावरण किए गए अशोक स्तंभ में मौजूद शेरों को कुछ अलग रूप में प्रदर्शित किए जाने को लेकर विवाद शुरू हो गया है.
हरबंस मुखिया, राजमोहन गांधी, कुणाल चक्रवर्ती और नयनजोत लाहिड़ी सहित कई इतिहासकारों के मुताबिक, अशोक के मूल चिह्न से तुलना करने पर ‘नए शेर’ थोड़े अलग नजर आते हैं और इनमें शांति एवं सद्भावना का समान भाव नहीं नजर आता.
हालांकि, इतिहासकार पारोमिता दास गुप्ता उनकी राय से इत्तेफाक नहीं रखतीं. उनका तर्क है कि नए संसद भवन की छत पर स्थापित किए गए अशोक स्तंभ में मौजूद शेर ज्यादा बड़े और ऊर्जावान दिखाई देते हैं, जो इस जंतु का मूल चरित्र है.