
रामदेव को तथ्यहीन और अवैज्ञानिक दावे करने की छूट क्यों मिली हुई है
The Wire
दवाओं से जुड़े क़ानूनों का उल्लंघन करते हुए रामदेव की पतंजलि वेलनेस और दिव्य साइंटिफिक आयुर्वेद द्वारा अपने उत्पादों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हुए अख़बारों में धड़ल्ले से साक्ष्य रहित एलोपैथी विरोधी विज्ञापन दिए जा रहे हैं. इससे पहले महामारी के बीच में रामदेव ने 'कोरोना वायरस की दवा' बनाने का भी दावा किया था.
10 जुलाई को, एफएमसीजी कारोबार के बड़े खिलाड़ी बाबा रामदेव द्वारा संचालित दो कंपनियों- पतंजलि वेलनेस और दिव्य साइंटिफिक आयुर्वेद ने भारत के कई प्रमुख अंग्रेजी भाषा के अखबारों में एक आधे पन्ने का विज्ञापन प्रकाशित किया. ‘अगर 25 वर्षों तक गहन शोध किया गया है, तो यह जरूर ही शोध वैज्ञानिकों द्वारा किसी संस्थान में किया गया होगा और इसके परिणाम सार्वजनिक दायरे में प्रकाशित किए गए होंगे- मसलन, जैसा कि विश्वभर में चलन है, इन परिणामों को सम्मानित जर्नलों में प्रकाशित किया गया होगा. विज्ञापन में ऐसे किसी प्रकाशन का जिक्र नहीं है, न ही इनके होने की कोई जानकारी नहीं है.
इस विज्ञापन ने एलोपैथी (अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति) पर ‘गलत धारणा’ फैलाने का आरोप लगाते हुए एक वैज्ञानिक तरीके से जांची-परखी और प्रमाणित चिकित्सा पद्धति के खिलाफ बिना किसी सबूत के एक के बाद एक कई इल्जाम जड़े गए थे. इस विज्ञापन में दावा किया गया कि पतंजलि वेलनेस भारत के कई प्रमुख गैर-संक्रामक रोगों: उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, असामान्य थायरॉयड फंक्शन, आंख और कान के इलाज, उच्च कोलेस्ट्रॉल, असामान्य लिवर फंक्शन, चर्म रोग, अर्थराइटिस और अस्थमा का निदान कर सकती है. ऐसे किसी प्रकाशन की गैरहाजिरी में, यह सवाज वैध तरीके से पूछा जा सकता है : (ये शोध करने वाले) वैज्ञानिक कौन थे और उनकी योग्यता क्या थी? संस्थान का नाम क्या था और वह कहां है? किस शोध प्रविधि (रिसर्च मेथेडोलॉजी) का इस्तेमाल किया गया?’
यह दावा भी बगैर किसी सबूत के किया गया है. इस विज्ञापन में तर्कहीन तरीके से ‘जेनेटिक रोगों’ के स्थायी समाधान का भी दावा किया गया है. अंत में इसने दबे स्वर में यह कहा है कि ‘हृदय के ब्लॉकेज’, ‘निःसंतानता’, मूत्र मार्ग का संक्रमण और ‘स्ट्रेस’ का कोई स्थायी इलाज नहीं है. अगर सभी व्यक्ति के सभी परीक्षण परिणाम एक पन्ने पर भी दर्ज किए जाएं, तो भी एक करोड़ लोगों के डेटा को रिकॉर्ड करने के लिए एक करोड़ पन्नों की जरूरत होगी. अगर 300 पन्नों की एक जिल्द का हिसाब लगाया जाए, तो सारे डेटा को संकलित करने के लिए तीस हजार से ज्यादा जिल्दों की जरूरत होगी. वे कहां हैं? क्या रामदेव इन सवालों का जवाब देंगे?
ऐसा कहते हुए इनमें से ज्यादातर रोगों के लिए साक्ष्य आधारित चिकित्सा में इनमें से ज्यादातर समस्याओं के लिए उपलब्ध समाधानों को नकार दिया. वास्तव में, क्या इनमें से कुछ सवालों का जवाब क्या विज्ञापन में ही, उसे विश्वसनीय बनाने के लिए नहीं दिया जाना चाहिए था, खासकर तब जब इसमें किए जा रहे दावों के पहली नजर में ही सही होने की गुंजाइश काफी कम नजर आ रही हो.’