राजद्रोह: क्या ब्रिटिश राज का दमनकारी क़ानून वर्तमान भारत में प्रासंगिक है?
BBC
इस सवाल पर लगातार बहस जारी है. 2019 में गृह मंत्रालय ने कहा था कि देशद्रोह के अपराध से निपटने वाले आईपीसी के प्रावधान को ख़त्म करने का प्रस्ताव नहीं है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दो टीवी चैनलों के ख़िलाफ़ राजद्रोह के आरोप में आंध्र प्रदेश पुलिस को दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकते हुए कहा कि राजद्रोह से सम्बंधित आईपीसी की धारा 124ए की व्याख्या करने के ज़रुरत है. अदालत ने ये भी कहा कि इस धारा के इस्तेमाल से प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले असर के मद्देनज़र भी इस व्याख्या की ज़रुरत है. आंध्र प्रदेश पुलिस ने दो तेलुगू न्यूज़ चैनलों- टीवी 5 और एबीएन चैनल के ख़िलाफ़ 14 मई को राजद्रोह का मुक़दमा दायर किया था. इन चैनलों पर आरोप है कि उन पर प्रसारित कार्यक्रमों के दौरान लोक सभा सांसद रघुराम कृष्णम राजू ने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी की आलोचना की. एफ़आईआर में राजू को पहले, टीवी5 और एबीएन को क्रमश: दूसरे और तीसरे आरोपी के रूप में नामित किया गया है. राजू सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी के ही एक विद्रोही नेता हैं और इस मामले में उनकी गिरफ़्तारी होने के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई थी. इन चैनलों की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान और सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत में कहा कि आंध्र पुलिस की यह एफ़आईआर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का मुंह बंद करने का प्रयास है और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है.More Related News