
राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल- जो धारा स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों ने लगाई, उसे अब भी बनाए रखने की क्या जरूरत?
ABP News
केंद्र की तरफ से कोर्ट का नोटिस स्वीकार करते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी संकेत दिए कि सरकार इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कदम उठाना चाहती है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई है. चीफ जस्टिस एनवी रमना ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि इस कानून का उपयोग अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं के खिलाफ किया था. आश्चर्य है कि आजादी के लगभग 75 साल बाद भी सरकार इस कानून को बनाए रखने की जरूरत समझती है. कोर्ट ने आज इस मसले पर सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी बोम्बतकरे की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया. सरकार के खिलाफ बोलने में डर का सवालकोर्ट ने आज जिस याचिका पर नोटिस जारी किया है उसमें 1962 में आए 'केदारनाथ सिंह बनाम बिहार' फैसले पर सवाल उठाए गए हैं. उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि आईपीसी की धारा 124A वैध है. लेकिन इसका उपयोग ऐसे मामलों में ही होना चाहिए जिसमें किसी के कुछ कहने से सचमुच हिंसा हुई हो या सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का अंदेशा हो. याचिका में कहा गया है कि यह फैसला पुराना पड़ चुका है. यह दुनियाभर में प्रचलित उस कानूनी सिद्धांत के मुताबिक नहीं है जिसमें किसी की बोलने की स्वतंत्रता को डरा कर दबाने को गलत माना गया है.More Related News