यूपी: ग़ुलामी, उत्पीड़न, बेदख़ली से लड़ते हुए वनटांगियों का संघर्ष आज भी जारी है
The Wire
गोरखपुर और महराजगंज के जंगल में स्थित 23 वन ग्रामों के वनटांगियों को वन अधिकार क़ानून लागू होने के डेढ़ दशक और कड़े संघर्ष के बाद ज़मीन पर अधिकार मिला. लेकिन आज भी यहां विकास की रफ़्तार धीमी ही है.
गोरखपुर: ‘जमीन के पट्टा, आवास मिल गईल त लोग कहत बा कि आजादी मिल गईल लेकिन जनता त बिखर गईल. प्रधानी का चुनाव वनटांगिया के लिए काल बन गईल बा. हर गांव में 12-13 गो पार्टी हो गईल बा. जमीन अबले तक वन विभाग के नाम बा त हमन के मिलल का? लड़ाई अबहिन अधूरा बा. हमन के लिए मुख्य चीज बा चकबंदी, खसरा-खतौनी. जब तक ई नाहीं मिली, जमीन अपने नाम ना हो जाय तब तक लड़ाई चलत रहे के चाही. ई मिल जाई त बाकी काम अपने आप धीरे-धीरे हो जाई. ’
बरहवा वन ग्राम के मुखिया भरत ने वनटांगियों की बैठक में जब अपनी यह बात रखी तो उनकी बात समूचे 23 वन ग्रामों के वनटांगियों की आज की स्थिति पर बयान था.
गोरखपुर और महराजगंज के जंगल में स्थित 23 वन ग्रामों के वनटांगियों ने वन अधिकार कानून लागू होने के बाद के डेढ़ दशक में अपनी एकता और संघर्ष के बूते जमीन पर अधिकार लिया, अपने गांवों को राजस्व गांव बनवाया और उन्हें पंचायत से जोड़ने में कामयाबी पाई.
राजस्व गांव बनने के बाद उनके गांव में स्कूल, आंगनबाड़ी, सड़क और बिजली की रोशनी दिख रही है और बाहरी दुनिया के लोग कह रहे हैं कि वनटांगियों की सभी समस्या हल हो है लेकिन करीब 100 वर्ष तक (27 वर्ष अंग्रेजी हुकूमत और आजाद भारत के 73 वर्ष) अलग-थलग जंगल में पड़ा यह समुदाय जब मुख्यधारा से जोड़ा जा रहा है तो वहां एक तरह की बेचैनी भी दिख रही है.