यादव महासभा पर मुलायम जैसी पकड़ नहीं रख सके अखिलेश... बिगड़ न जाए सपा का गेम?
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उत्तर प्रदेश की सियासत जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. ऐसे में यादव महासभा जो सपा के लिए सियासी तौर पर खाद-पानी देने का काम करती रही है, वो अब अखिलेश यादव की पकड़ से बाहर निकल रही है. अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की कमान सपा नेता के हाथों से निकल कर बंगाल के डॉ. सगुन घोष और बसपा सांसद श्याम सिंह यादव के हाथों में आ गई है.
उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार सियासी चक्रव्यूह में घिरते जा रहे हैं. सपा से अलग हो चुके शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव से हिसाब-किताब बराबर ही नहीं बल्कि सपा के 'यादव' कोर वोटबैंक में सेंधमारी 'यदुकुल मिशन' शुरू किया है. बीजेपी की नजर पहले से ही यादवों पर है. इन सारी कवायद के बीच अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा भी अब सपा के पकड़ से बाहर निकलती नजर आ रही है, जिससे अखिलेश यादव के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं.
यादव महासभा में बड़ा बदलाव
गुजरात के द्वारिका में रविवार को अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के कार्यकारी समिति की बैठक में कोलकाता के डॉ. सगुन घोष को राष्ट्रीय अध्यक्ष और बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया है. यादव समाज के सबसे बड़े संगठन की कमान सपा के किसी नेता के हाथ में नहीं होगी जबकि मुलायम सिंह यादव ने हमेशा महासभा पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखा था.
पिछल तीन दशकों में पहली बार यादव महासभा में इतना बड़ा बदलाव दिख रहा है, जिसका असर आने वाले समय में सपा की सियासत पर पड़ना लाजमी है. 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यादव महासभा में हुए इस बदलाव से अखिलेश यादव के लिए अपने कोर वोटबैंक यादव समुदाय को भी साधे रखने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि तमाम विपक्षी पार्टियों की नजर इसी यादव वोटबैंक पर है.
यादव महासभा की सियासत
दरअसल, अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की स्थापना आजादी से पहले 1924 में हुई हैं. चौधरी बदन सिंह से लेकर अभी तक कुल 46 अध्यक्ष चुने गए हैं. इनमें से ज्यादातर अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के रहे हैं, जिसके चलते मुलायम सिंह की सियासत में यादव महासभा का अहम योगदान रहा. चौधरी राम गोपाल से लेकर चौधरी हरमोहन सिंह और पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह तक ने यादव महासभा की कमान संभाली. महासभा के ये तीनों ही अध्यक्ष सपा से जुड़े रहे हैं और मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते थे.
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