'यहां सवाल PM की प्रतिष्ठा का था?' रुंधे गले से निकली इंदिरा की आवाज, कांग्रेस के मठाधीश और महामहिम का चुनाव
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भारत के 70 से ज्यादा सालों का संसदीय इतिहास कई किस्सों और कहानियों को समेटे हुए है. जहां लोकतांत्रिक भारत के बनने की कहानी है. वो भारत जिसकी छाया आज हम रायसीना हिल, संसद भवन में पाते हैं. इंदिरा गांधी का कार्यकाल देश में कई उथल-पुथल लेकर आया था. इन्हीं में से एक है 1969 का राष्ट्रपति चुनाव, जब इंदिरा का पॉलिटिक्ल स्किल और स्टेटक्राफ्ट लोगों को हैरान कर गया.
देश को पांचवां राष्ट्रपति मिल चुका था. 1969 का वो राष्ट्रपति चुनाव हो चुका था जहां राजनीति की बिसात पर शतरंज के मोहरे ऐसे बिछाए गए थे कि भारत की प्रधानमंत्री ही अपनी पार्टी की प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट को हराने में जुटी थीं. सन 47 में आजादी, 50 में संविधान पाने वाले नए-नए भारत के लिए ये चुनाव सांप-सीढ़ी का लुभावना खेल बन गया था. जहां अपने ही लोगों को लंगड़ी लगाई जा रही थी.
खैर चुनाव हुआ. भारत में मजदूरों के हक के लिए आवाज उठाने वाले वीवी गिरी देश के पांचवें राष्ट्रपति बने. लेकिन कांग्रेस पार्टी का उबाल था कि शांत हो ही नहीं रहा था. चुनाव नतीजों से खार खाए कांग्रेस के ओल्ड गार्ड यानी सिंडिकेट ने इंदिरा के खिलाफ एक्शन की तैयारी शुरू कर दी.
दरअसल ये इलेक्शन तो राष्ट्रपति का था, लेकिन दांव-पेच, घात-प्रतिघात गांव वाले प्रधानी चुनाव जैसे थे. बड़े-बड़े नेता को खुसुर-पुसुर करते सुना जा सकता था. खेमेबाजी और गुटबंदी थी. प्रतिद्वंदी गुट की जानकारी जुटाने के लिए, जो हो सकता था तिकड़म भिड़ाए जाते थे. इसी माहौल में राष्ट्रपति का चुनाव हुआ.
इंदिरा के आंसू और PM पद की प्रतिष्ठा का सवाल
राष्ट्रपति चुनाव के बाद इंदिरा गांधी मजबूत तो हुईं, लेकिन वे इस बात से पूरी तरह वाकिफ थीं कि विरोधी कैंप से पलटवार होगा. पीएम इंदिरा ने भी अपने पक्ष में सांसदों को गोलबंद करना शुरू किया. वे सांसदों के छोटे-छोटे गुट से संवाद कर रही थीं और अपना पक्ष उनके सामने रख रही थीं. लेकिन इंदिरा कभी-कभी भावुक हो जाती थीं. भारत के संसदीय इतिहास को कलमबद्ध करने वाले पत्रकार कुलदीप नैयर अपनी जीवनी Beyond The lines में लिखते हैं, "सांसदों को अपनी बातें समझाते हुए इंदिरा कई बार रो पड़तीं, और कहतीं कि मैंने उन्हें जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि मैं इनवॉल्व थी बल्कि इसलिए क्योंकि यहां भारत के प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा का सवाल था." इंदिरा कहती थीं कि उन्हें पता है कि अपने जीवन के आखिरी दिनों में नेहरू कितने दुखी रहा करते थे क्योंकि वे कांग्रेस को समाजवाद के रास्ते से भटकने से नहीं रोक पाए थे. इंदिरा की माने तो वे कांग्रेस को और भटकने देना नहीं चाहती थी.
कांग्रेस का ओल्ड गार्ड यानी मठाधीश
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