म्यांमार से मणिपुर आकर बसने वाले तमिल लोगों की कहानी
BBC
पूर्वोत्तर भारत के किसी राज्य में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास एक क़स्बे में एक भव्य दक्षिण भारतीय मंदिर का दिख जाना किसी अचंभे से कम नहीं है.
भारत के एक पूर्वोत्तर राज्य में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे क़स्बे में एक भव्य दक्षिण भारतीय मंदिर का दिख जाना किसी अचंभे से कम नहीं है. और यह जानकारी कि उस क़स्बे में क़रीब 3,000 तमिल समुदाय के लोग बसते हैं अपने आप में चौंकाने वाली बात है. ऐसा ही कुछ नज़ारा बीबीसी ने मणिपुर के सीमावर्ती क़स्बे मोरेह में देखा. यहाँ सुदूर तमिलनाडु से आए लोगों ने इस मणिपुरी क़स्बे को ना केवल अपना घर बना लिया है बल्कि कई दशकों से यहाँ रहते रहते वे यहाँ की संस्कृति का एक अभिन्न अंग बन गये हैं. श्री आंगला परमेश्वरी श्री मुनेश्वरार मंदिर का विशाल परिसर मोरेह में तमिल समुदाय के लोगों की उपस्थिति का सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है. यह मंदिर बिल्कुल भारत-म्यांमार सीमा से सटा हुआ है और इसका प्रांगण दोनों देशों के बीच पड़ने वाले 'नो मेन्स लैंड' के बिल्कुल साथ लगा हुआ है. जब बर्मा (वर्तमान में म्यांमार) अंग्रेज़ी शासन के अधीन था, तो अंग्रेज़ बहुत से तमिल लोगों को वहाँ मज़दूरी और कई अन्य तरह के कामों के लिए ले गये थे. 1948 में बर्मा आज़ाद हो गया लेकिन बहुत से भारतीय लोगों ने जिनमें तमिल भी शामिल थे, वहीं बसना चुना. 1962 में जब बर्मा लोकतंत्र से सैन्य शासन की तरफ़ मुड़ा, तो वहाँ रहने वाले भारतीय लोगों के लिए मुश्किल खड़ी हो गयी.More Related News