मोरबी ब्रिज हादसे का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, कोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच कराने की मांग
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सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी ने यह जनहित याचिका दायर की है. याचिका में मांग की गई है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए देशभर में पुराने पुल या ऐतिहासिक धरोहरों में जुटने वाली भीड़ को मैनेज करने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए.
गुजरात के मोरवी में रविवार को हुए ब्रिज हादसे के कारणों की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इस मामले पर जल्द सुनवाई के लिए मंगलवार को इसे पेश करने की योजना है. जनहित याचिका में मानवीय लापरवाही से हुई इस घटना की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुवाई में जांच कराने की मांग की गई है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी ने यह जनहित याचिका दायर की है. याचिका में मांग की गई है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए देशभर में पुराने पुल या ऐतिहासिक धरोहरों में जुटने वाली भीड़ को मैनेज करने के लिए नियम बनाए जाने चाहिए.
बता दें कि गुजरात के मोरबी की मच्छु नदी पर बना केबल ब्रिज रविवार शाम को टूट गया था, जिसमें अब तक 143 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. गुजरात सरकार ने मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की बात कही है. इस मामले पर प्रधानमंत्री मोदी ने उच्च अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक भी की.
इस मामले में ब्रिज का रखरखाव करने वाली कंपनी ओरेवा से जुड़े नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इसके साथ ही मामले में संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है. इस हादसे को लेकर गुजरात में दो नवंबर को राज्यव्यापी शोक मनाया जाएगा.
143 साल पुराना था ब्रिज
मोरबी में हुए ब्रिज हादसे के बाद अब तक पुल से जुड़े कई खुलासे हो चुके हैं. सामने आया है कि मोरबी का 765 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा पुल 143 साल पुराना था. इस पुल का उद्घाटन 1879 में किया गया था. इस केबल ब्रिज को 1922 तक मोरबी में शासन करने वाले राजा वाघजी रावजी ने बनवाया था. वाघजी ठाकोर ने पुल बनाने का फैसला इसलिए लिया था, ताकि दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ा जा सके.
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