
मोदी सरकार और सावरकर का सच…
The Wire
सेल्युलर जेल के सामने बने शहीद उद्यान में वीडी सावरकर की मूर्ति और संसद दीर्घा में उनका तैल चित्र लगाकर भाजपा सरकार ने उनकी गद्दारी के प्रति जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है.
विलायत में वकालत- की पढ़ाई पूरी करने के बाद महात्मा गांधी 5-6 महीने भारत में रहे जब उन्हें दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुल्लाह ने अपने मुकदमे के लिए वकील रखा और अपने जहाज से दक्षिण अफ्रीका ले गए. गांधी को लगा था कि साल डेढ़ साल दक्षिण अफ्रीका में रहना होगा फिर भारत लौट कर वकालती जमाएंगे. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के जन्म के बाद उनका अनुमान गलत साबित हुआ. ‘इस मौके पर मैंने अन्य संगठनों के नेताओं से भी बातचीत की, जैसे कि ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के प्रधान मि. जिन्ना से, अ.भा. हिंदू महासभा के अध्यक्ष श्री सावरकर से. उस समय श्री जिन्ना अंग्रेजों की मदद से पाकिस्तान की अपनी योजना को पूरा करने की सोच रहे थे. कांग्रेस के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए राष्ट्रीय संघर्ष शुरू करने के मेरे सुझाव का श्री जिन्ना पर जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा यद्यपि मैंने सुझाव दिया था कि यदि इस प्रकार मिल-जुलकर संघर्ष किया गया तो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री वही बनेंगे. श्री सावरकर अंतरराष्ट्रीय स्थिति से बिल्कुल अनभिज्ञ दिखाई देते थे और बस यही सोच रहे थे कि ब्रिटेन की भारत में जो सेना है इसमें घुसकर हिंदू किस प्रकार सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करें. इन मुलाकातों के बाद मैं इसी नतीजे पर पहुंचा कि मुस्लिम लीग या हिंदू महासभा से किसी प्रकार की कोई आशा नहीं की जा सकती.’ (नेताजी संपूर्ण वाङ्मय,खंड 2, पृष्ठ 272)
सत्याग्रह के दौरान गांधी ने दो बार दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह के मसले पर इंग्लैंड यात्रा कीं. 1906 में पहली यात्रा के दौरान ‘सत्याग्रह’ उनके इरादों में आ चुका था. इस यात्रा में दादाभाई नौरोजी का उन्हें स्नेह, आशीष और सहयोग मिला. दादाभाई ब्रिटिश पार्लियामेंट के पूर्व सदस्य (लिबरल पार्टी) थे तथा दक्षिण अफ्रीका के मसले पर उनकी पहल पर सभी दलों के सांसदों की एक बैठक गांधी के साथ आयोजित की गई थी.
इंग्लैंड पहुंचकर शुरुआत के कुछ दिन गांधी श्यामजी कृष्णवर्मा द्वारा स्थापित भारतीय छात्रों के लिए स्थापित ‘इंडिया हाउस’ में टिके थे. कृष्णवर्मा हिंसक साधनों से परिवर्तन में यकीन रखते थे, मांडवी-कच्छ के मूल रूप से थे और उन्होंने इंडियन होम रूल सोसायटी, इंडियन सोशियोलॉजिस्ट नामक पत्रिका भी शुरू की थी. कुछ ही दिन इंडिया हाउस में रहने के बाद गांधी एक ऑलीशान होटल में रहने चले गए थे. ब्रिटिश हुक्मरान के समक्ष रुतबा फीका न पड़े, यह मकसद रहा होगा.
दक्षिण अफ्रीका के मसले पर गांधी की दूसरी इंग्लैंड यात्रा 1909 में हुई. इस बीच दादा भाई भारत लौट गए थे. मदनलाल ढींगरा नामक श्यामजी कृष्णवर्मा के शागिर्द ने एक अंग्रेज अफसर की हत्या कर दी थी. श्यामजी ने अपनी पत्रिका में लिखा था कि राजनीतिक छलघात हत्या नहीं होती. इस मामले में गिरफ्तारी की आशंका में श्यामजी कृष्णवर्मा इंग्लैंड से पेरिस चले गए थे और इंडिया हाउस में वीडी सावरकर का वर्चस्व था. इस हत्या के बाद इंडिया हाउस से कई युवा दूर ही रहना चाहते थे. मदनलाल ढींगरा की हत्या के बाद पड़ने वाले दशहरे के मौके पर मुख्य अतिथि के नाते गांधी से उपयुक्त कोई व्यक्ति नहीं सूझा.