मेयर चुनाव: पीठासीन अधिकारी को लेकर फिर होगी LG-दिल्ली सरकार में तनातनी? क्या कहता है कानून
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दिल्ली में मेयर पद का चुनाव एक बार फिर करीब आ गया है. ऐसे में पीठासीन अधिकारी का नाम मनोनीत किए जाने की कवायद शुरू हो गई है. AAP की तरफ से एक बार फिर पार्षद मुकेश गोयल का नाम आगे बढ़ाया गया है. मुकेश के नाम की फाइल शहरी विकास विभाग ने उपराज्यपाल कार्यालय भेज दी है. वहां से मंजूरी मिलने का इंतजार है. हालांकि, इसकी संभावना कम जताई जा रही है.
दिल्ली नगर निगम के दूसरे साल के मेयर का चुनाव 26 अप्रैल को है, उससे पहले मेयर चुनाव की अध्यक्षता करने वाले पीठासीन अधिकारी का नाम तय करने की कवायद शुरू हो गई है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस पार्षद मुकेश गोयल का नाम आगे बढ़ाया है, इससे पहले जनवरी में भी मेयर चुनाव के वक्त AAP ने मुकेश का नाम आगे बढ़ाया था. हालांकि, उनके नाम पर उपराज्यपाल की मुहर नहीं लग सकी थी. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार एलजी AAP की सिफारिश मानेंगें या फिर चुनाव से पहले एलजी और दिल्ली सरकार में इस मुद्दे पर ठनेगी?
दिलचस्प हो जाता है कि स्वायत्तशासी नगर निगम जिस दिल्ली नगर निगम एक्ट से चलता है उसमें पीठासीन अधिकारी को तय किये जाने को लेकर क्या प्रावधान है. अब दूसरे साल के लिए 26 अप्रैल को महापौर का चुनाव होना है और पीठासीन अधिकारी के चयन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. दिल्ली नगर निगम ने शहरी विकास विभाग को यह फाइल भेज दी है, उसके बाद यह फाइल एलजी ऑफिस में जाएगी.
एक्ट में उपराज्यपाल को दिया गया है अधिकार
हैरान करने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी इस बात पर अड़ी है कि पीठासीन अधिकारी सीनियर मोस्ट होना चाहिए, यह दिल्ली नगर निगम एक्ट में कहीं भी उल्लिखित नहीं है. एक रिटायर्ड लॉ ऑफिसर ने साफ तौर पर बताया कि ऐसा करना महज एक प्रैक्टिस को मानना है, जबकि दिल्ली नगर निगम के एक्ट 77ए के तहत दिल्ली के महापौर- उपमहापौर के लिए पीठासीन अधिकारी चुनने का अधिकार दिल्ली के एलजी का है. वह किसी भी पार्षद को अपने विवेक के आधार पर पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर सकते हैं. हालांकि वह चुनाव का प्रत्याशी नहीं होना चाहिए.
दिल्ली नगर निगम एक्ट भी साइलेंट है
निगम के पूर्व लॉ ऑफिसर और एक्सपर्ट का कहना है कि दिल्ली नगर निगम एक्ट 2022 के सेक्शन 77 के मुताबिक, निगम प्रशासक यानि उपराज्यपाल महापौर चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी नियुक्त करेंगे. किसी अनुभवी पार्षद को ही पीठासीन अधिकारी बनाया जाना चाहिए, इस पर एक्ट पूरी तरह से साइलेंट है. हां, ये परम्परा जरूर है कि वरिष्ठ पार्षदों में से एक को उपराज्यपाल की तरफ से नियुक्त किया जाता रहा है.
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