मेटावर्स: क्यों है इस पर टिकी बॉलीवुड की नज़र?
BBC
अनुमान है कि बस दो साल में भारत में मेटावर्स का मार्केट 800 अरब डॉलर तक पहुँच जाएगा. शुरुआत भी जल्द ही 'बड़े मियां छोटे मियां' फ़िल्म के साथ होने वाली है.
वैसे तो एंटरटेनमेन्ट की दुनिया वास्तविकता की गहराई से लेकर कल्पना के आकाश तक कहीं भी जा सकती है. हालांकि दर्शकों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए ह्यूमन प्रेज़ेन्स का होना ज़रूरी होता है, लेकिन अब एक आभासी दुनिया की कल्पना कर हर तरह के दृश्य को क्रिएट करना भी संभव हो रहा है और इसे बॉलीवुड हाथों हाथ लेने को तैयार है.
हम बात कर रहे हैं- मेटावर्स की. फ़िल्मी दुनिया अब तैयार है मेटावर्स के ज़रिए अपनी फ़िल्मों को एक ऐसी दुनिया में ले जाने के लिए जो शायद सपने से भी परे हो. बॉलीवुड के बड़े निर्माता इस मेटावर्स के सहारे मनोरंजन को एक अलग ही लेवल पर ले जा सकते हैं.
अनुमान है कि बस दो साल में भारत में मेटावर्स का मार्केट 800 अरब डॉलर तक पहुँच जाएगा. शुरुआत भी जल्द होने वाली है जिसकी घोषणा 'बड़े मियां छोटे मियां' नाम की फ़िल्म के साथ हो चुकी है.
आगे बढ़ने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि आखिर ये मेटावर्स बला क्या है? मेटावर्स दो शब्दों से मिलकर बना है. मेटा यानी बियॉन्ड, अर्थात वो चीज़ जो अस्तित्व में ही न हो और सोच से भी परे हो. वर्स यानी यूनिवर्स जिसे देखा नहीं जा सकता. कुल मिलाकर एक आभासी दुनिया.
साल 1992 में जब नील स्टीफ़ेन्सन ने अपनी किताब 'स्नो क्रश' में इसकी कल्पना की थी तभी से ये समझ में आ गया था कि एक दिन इंसानी दिमाग़ इसे वास्तविक रूप देगा.