मूर्ति, वस्त्र और आभूषण...अयोध्या में विराजमान रामलला का भव्य और दिव्य स्वरूप कैसे हुआ तैयार
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अयोध्या के राममंदिर के गर्भगृह से प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब भगवान रामलला की झलक सामने आई तो श्रद्धालु उसे देखते ही रह गए. सिर पर मुकुट, चेहरे पर सौम्यता, शरीर पर दिव्य आभूषण और पीतांबर वस्त्र. ये स्वरूप बिल्कुल ऐसा था जैसा कि पुराणों में वर्णन हुआ है. इस स्वरूप को सामने लाने में काफी बारीकियों का ध्यान रखा गया है.
अयोध्या के राम मंदिर में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई है. गर्भगृह में अब भगवान के दर्शन किए जा सकते हैं और इस तरह 500 साल का इंतजार पूरा हुआ. सोमवार को प्राण प्रतिष्ठा के बाद जब गर्भगृह से रामलला की झलकियां सामने आईं तो रामलला के दिव्य-भव्य दर्शन ने सभी को मंत्रमुग्ध कर लिया. हालांकि विग्रह की पहली झलक तो लोग पहले भी देख चुके थे, लेकिन आज जब श्रीविग्रह को भव्य शृंगार के साथ देखा गया तो इसकी छटा अलग ही थी. रामलला की प्रतिमा निर्माण की कारीगरी, शृंगार में की गई बारीकियों और वस्त्रों की दिव्यता में बहुत ही शोधपरक तथ्यों का ध्यान रखा गया है.मैंने किया है गिलहरी प्रयासः डिजाइनर मनीष त्रिपाठी श्रीराम के वस्त्र भी पौराणिक आधारों पर ही बनाए गए हैं. कैसे बने रामलला के खास वस्त्र, आजतक ने दिल्ली के डिजाइनर मनीष त्रिपाठी से खास बातचीत की. मनीष त्रिपाठी, वैसे तो इंडियन क्रिकेट टीम के फॉर्मल से लेकर भारतीय सुरक्षा बलों, भारतीय सेना के बुलेट प्रूफ जैकेट तक डिजाइन करते हैं. लेकिन इस बार इनका काम बिल्कुल अलग था. मनीष ने कहा कि, यह सौभाग्य है कि ऐसा काम करने का मौका मिला. मैंने तो साल 2021 में भी यूपी खादी के सहयोग से रामलला के लिए वस्त्र डिजाइन किए थे. तब से मैं ट्रस्ट के संपर्क में रहा. बकौल मनीष उन्होंने, इस कार्य के लिए कोई पैसे, फीस नहीं ली. बल्कि मैंने तो इस कार्य में गिलहरी प्रयास ही किया है. जहां रामलला को अपने गर्भगृह में स्थापित होने में 500 साल लग गए, तो इस काम के लिए मेरे 50 दिनों का क्या ही महत्व है. यह तो कुछ भी नहीं है.
जिम्मेदारी भरा काम था रामलला का वस्त्र निर्माण मनीष त्रिपाठी ने कहा कि, रामलला के वस्त्र बनाने हैं तो यह वाकई एक जिम्मेदारी भरा काम था, क्योंकि यह ऐसा होना चाहिए कि सभी के मन को मोह ले. सबसे बड़ी बात ये कि कहते हैं न कि, हुइहें वही जो राम रचि राखा... तो मैं इसमें बहुत विश्वास करता हूं. मेरे मन में सिर्फ एक बात थी कि यह महज पोशाक नहीं है, बल्कि ये करोड़ों लोगों की आस्था का विषय है. सबने मन में एक परिकल्पना कर रखी है कि भगवान आएंगे तो ऐसे देखेंगे तो ये बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी. चिंता इतनी थी कि जो लोगों की इमैजिनेशन है क्या हम उसपर खरे उतर पाएंगे?
आप किसी सेलिब्रिटी के कपड़े बनाइये तो वो अपनी पसंद-नापसंद बता सकता है, लेकिन यहां सच में ऐसा करना भगवान से कम्यूनिकेट करने जैसा था. जहां जरूरत पड़ती थी, मैं सच में मन ही मन भगवान से पूछता था, वार्तालाप करने की कोशिश करता था और सोचता था कि उन्हें क्या पसंद है. फिर इसी आधार पर डिजाइनिंग होती थी.
किन खास नियमों का किया गया पालन? क्या वस्त्र डिजाइन करते हुए कुछ खास नियमों का पालन भी करना होता था. जैसे धोती वगैरह पहनना? इस सवाल का जवाब देते हुए मनीष त्रिपाठी ने कहा कि, हम सब भगवान के चरणों में बैठकर काम कर रहे थे तो हमने नंगे पांव ही काम किया. धोती वगैरह पहनना भी मैंने मेंटेन किया. रामलला का बेसिक कॉन्सेप्ट ये था कि वह पांच वर्षीय बालक हैं, राजा दशरथ के पुत्र हैं तो भगवान हैं, तो उनके वस्त्र कैसे होंगे. क्या पसंद हो सकता है. कपड़ा मुलायम होना चाहिए. इन सब बारीकियों पर ध्यान दिया. रिसर्च की और ये कपड़े ऑथेंटिक लगें इनका ध्यान रखा. इसके अलावा जो ट्रस्ट और मंदिर से मानक मिले थे, उनपर काम किया. इस तरह भगवान के वस्त्र तैयार हुए.
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