मुलायम कुनबे में फिर क्यों पड़ी फूट? अखिलेश से शिवपाल की नाराजगी के ये हैं 5 कारण
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उत्तर प्रदेश में छह साल पहले मुलायम परिवार में छिड़ी सियासी अदावत अभी तक जारी है. यूपी चुनाव के दौरान भले ही शिवपाल यादव और अखिलेश यादव ने परिवार के दबाव में साथ आ गए थे, लेकिन शिवपाल को न तो सियासी कद मिला और पुराना रुतबा. ऐसे में एक बार फिर से यादव कुनबे में सियासी दरार पड़ गई है.
उत्तर प्रदेश के मुलायम कुनबे में चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच पांच साल पहले सियासी वर्चस्व की जंग के चलते जो दरार पैदा हुई, वो कभी भरी ही नहीं. परिवारिक व सामाजिक दबाव के चलते चुनाव के दौरान भले ही चाचा को भतीजे के करीब लाकर खड़ा कर दिया था, लेकिन नतीजों के साथ ही दूरियां फिर साफ नजर आने लगी हैं. लगता है कि चुनाव के दौरान जहर का घूंट पीकर सब कुछ बर्दाश्त करने वाले शिवपाल अब अखिलेश को सियासी सबक सिखाने का मन बना चुके हैं.
'यादव परिवार' में एक बार फिर अंदरुनी झगड़े की आहट सुनाई देनी लगी है. भतीजे ने चाचा को सपा का विधायक मानने से इनकार किया तो नाराज शिवपाल ने विधायक पद की शपथ लेने के बाद सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर सियासी गलियारों में नए समीकरण को हवा दे दी. इसके बाद से सूबे में शिवपाल यादव के बीजेपी में शामिल होने और उन्हें राज्यसभा भेजे जाने की चर्चा तेज हो गई हैं. हालांकि, शिवपाल ने इसे शिष्टाचार भेंट बताया था.
सपा के सहयोगी दलों की बैठक में शामिल न होकर उन्होंने अपने बागी तेवर दिखा चुके हैं. इस तरह भतीजे अखिलेश यादव से बेहतर रिश्ते की उम्मीद और सपा में अपने पुराने रुतबे को पाने की ख्वाहिश पूरी न होने के चलते शिवपाल को बीजेपी के करीब लाकर खड़ा कर दिया है. ऐसे में शिवपाल क्या सियासी कदम उठाते हैं, उस पर निगाहें है, लेकिन सवाल उठता है कि अखिलेश से शिवपाल की नाराजगी के क्या वजह हैं, जिसके चलते चाचा नई सियासी राह तलाशने और मंथन करने में जुट गए हैं?
अखिलेश के व्यवहार से नाराज चाचा-भतीजे के बीच में छह साल पहले सियासी वर्चस्व की जंग शुरू हुई थी, जिसके बाद शिवपाल ने सपा ने नाता तोड़कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) नाम से अपनी पार्टी बना ली थी. सपा के संस्थापक मुलायम सिंह के हस्ताक्षेप के बाद चाचा-भतीजे ने 2022 चुनाव में हाथ मिला लिया था, लेकिन शिवपाल को न तो उम्मीद के मुताबिक सम्मान मिला और न ही कद. शिवपाल को स्टार प्रचारक के तौर पर अखिलेश ने कुछ चुनिंदा सीटों पर ही प्रचार कराया गया. आखिरी के चरणों में शिवपाल चुनाव प्रचार करने उतरे थे.
अखिलेश ने चाचा शिवपाल को न सिर्फ एक सीट दी बल्कि पार्टी में वह सम्मान भी नहीं दिया जिसकी उन्हें घर वापसी पर उम्मीद थी. मैनपुरी में चुनाव प्रचार के दौरान समाजवादी रथ की जो दो तस्वीर सामने आई थी, उससे शिवपाल का सपा में सियासी कद का एहसास साफ हो रहा था. मुलायम और अखिलेश रथ में सीट पर बैठे थे तो मुलायम की कुर्सी को हत्थे पर शिवपाल बैठे नजर आए थे और चेहरे पर उदासी छाई हुई है, जो उनके दर्द को बयां कर रही थी. वहीं, एक समय था जब वो मुलायम के बराबर वाली सीट पर बैठा करते थे. अखिलेश ने पूरे चुनाव के दौरान शिवपाल को पूरी तरह दरकिनार कर रखा था. इतना नहीं चुनाव के बाद भी अखिलेश ने जिस तरह का व्यवाहर रखा, उससे शिवपाल को नाराज होना लाजमी था.
विधायक दल की बैठक में नहीं मिला न्योता शिवपाल यादव सपा के चुनाव निशान पर जीतकर विधायक बने है. इसके बाद भी सपा ने 29 मार्च को लखनऊ में विधायक दल की बैठक में शिवपाल को नहीं बुलाया. इस बात से शिवपाल को गहरा धक्का लगा था. सपा की बैठक में न बुलाए जाने पर शिवपाल ने कहा था कि वह विधायक दल की बैठक में शामिल होने के लिए दो दिन से इंतजार कर रहे थे, लेकिन किसी ने उन्हें बैठक में आने के लिए नहीं कहा जबकि सपा के बाकी विधायकों को बुलाया गया है. सपा में हो रही अपनी उपेक्षा से नाराज शिवपाल लखनऊ से इटावा निकल गए थे. सपा ने दूसरे दिन सहयोगी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई तो शिवपाल शामिल नहीं हुए.
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