महामारी ने देश को एंजाइटी-डिप्रेशन में झोंका, बढ़ा सुसाइड रेट, ऐसे बदल सकते हैं हाल
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आत्महत्या के बढ़े आंकड़ों के बावजूद, भारत में कभी भी आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के रूप में नहीं माना गया है. लैंसेट की रिपोर्ट के चौंकाने वाले आंकड़े पढ़िए.
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को बदल दिया है. इस महामारी ने लोगों की जिंदगी प्रभावित की है. वहीं कोरोना भारत में इस महामारी के दौर में डिप्रेशन, एंजाइटी और टेंशन की बढ़ती दर ने सुसाइड रेट भी बढ़ा दिया है. महामारी के दौर में लोगों के तनाव से जूझने की ताकत भी कम हुई है. लैंसेट की ताजा रिपोर्ट बहुत चौंकाने वाली है जो बदलते वक्त की भयावह हालत पर हमें सोचने पर मजबूर करती है. आइए जानें कैसे हम इन हालातों का सामना कर सकते हैं.
लैंसेट अध्ययन के अनुसार देश में वैश्विक संख्या अनुपात का लगभग 37% हिस्सा है, जिसमें हर पांच में से दो महिलाएं भारतीय हैं. अब जब पूरी दुनिया में आत्महत्या रोकथाम माह बनाया जा रहा है. इस माह में आत्महत्या की घटनाओं से प्रभावित लोगों को याद करने, जागरूकता बढ़ाने और उन लोगों को उपचार निर्देशित करने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने का समय है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है.
लैंसेट रिपोर्ट के आंकड़े केवल वे त्रासदियां हैं जिनकी रिपोर्ट की जाती है. बाकी हर मामले रिपोर्ट भी नहीं हो पाते. क्योंकि भारत में कानून के चलते आत्महत्या के सभी मामले रिपोर्ट नहीं हो पाते. भारत में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को लागू करने के डर से लोग इसे दबाते हैं जो आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय अपराध बनाता है.
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