महाभारत की द्रौपदी अन्याय के ख़िलाफ़ खड़ी हुई थीं- राष्ट्रपति के तौर पर देश को ऐसी ही द्रौपदी चाहिए
The Wire
महाभारत की द्रौपदी एक निष्ठावान पत्नी और बेटी थीं, लेकिन जब अन्याय का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने सभी से असुविधाजनक सवाल पूछने की हिम्मत दिखाई. उम्मीद करनी चाहिए कि आरएसएस की एक निष्ठावान बेटी होने के बावजूद द्रौपदी मुर्मू वक़्त आने पर न्याय के लिए खड़ी होंगी.
महाभारत में पांडवों की ओर से सबसे शक्तिशाली किरदार द्रौपदी हैं. वे युधिष्ठिर द्वारा उन्हें दांव पर लगाने पर उनसे इसका अधिकार होने पर सवाल करती हैं. जाहिर तौर पर उस सभा में उन्हें कृष्ण द्वारा ‘बचाया’ गया था लेकिन पुरुषों भरी सभा में उनका गर्व और साहस के साथ अपना पक्ष रखना दिखाता है कि वहां जिसे बचाए जाने की जरूरत थी, वो द्रौपदी नहीं बल्कि वो पुरुष थे, जो उनका अनादर कर रहे थे.
इसी तरह महाश्वेता देवी की लघुकथा द्रौपदी की दोपदी मेहजन एक संथाल महिला है, जिसके साथ सुरक्षा बलों ने बलात्कार किया है. इस हिंसा का सामना कर चुकी जख्मी दोपदी कमांडर के सामने निहत्थी और निर्वस्त्र खड़ी है और पूछती है कि उसे क्यों शर्म आनी चाहिए जब ‘इस कमरे में कोई आदमी ऐसा नहीं है, जिससे उसे शर्माना चाहिए.’ और पहली बार कमांडर ‘बेहद डर’ जाता है.
ये वही द्रौपदियां हैं, जिन्हें भाजपा और आरएसएस मिटा देना चाहते हैं- अगस्त 2021 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी ऑनर्स के पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी की इस कहानी को हटाकर, 2016 में हरियाणा सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इस पर होने वाले नाटक के खिलाफ प्रदर्शन करके. तो ऐसे में जब वो ये कहते हैं कि द्रौपदी मुर्मू- जो देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं- को चुनना आदिवासियों के सशक्तिकरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दिखाता है, तो इसे संदेह की नजर से देखा जाना चाहिए.
आदिवासियों के लिए भाजपा के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे की सच्चाई यह है कि उन्हें अपनी जमीनें, अपने संसाधन और लोगों के विकास के लिए बलिदान कर देने चाहिए. आदिवासियों के लिए आवासीय विद्यालयों को उन्होंने एक आदिवासी एकलव्य का नाम दिया, जिसे एक क्षत्रिय- अर्जुन के लिए अपना अंगूठा बलिदान करना पड़ा था- उनका ऐसा करना ही दिखाता है कि संघ की नजरों में आदिवासियों (जिन्हें वे वनवासी कहते हैं) की क्या जगह है.