
महादेवी वर्मा: तू न अपनी छांह को अपने लिए कारा बनाना…
The Wire
जन्मदिन विशेष: महादेवी वर्मा जीवन भर व्यवस्था और समाज के स्थापित मानदंडों से लगातार संघर्ष करती रहीं और इसी संघर्ष ने उन्हें अपने समय और समाज की मुख्यधारा में सिर झुकाकर भेड़ों की तरह चुपचाप चलने वाली नियति से बचाकर एक मिसाल के रूप में स्थापित कर दिया.
‘बारात आई तो बाहर भागकर हम सबके बीच खड़े होकर बारात देखने लगे. व्रत रखने को कहा गया तो मिठाई कमरे में बैठकर खूब मिठाई खाई. रात को सोते समय नाउन ने गोद में लेकर फेरे दिलवाए होंगे, हमें कुछ ध्यान नहीं है. प्रातः आंख खुली तो कपड़े में गांठ लगी देखी तो उसे खोलकर भाग गए.’ ‘श्रमजीवी श्रेणी की स्त्रियों के विषय में तो कुछ विचार करना भी मन को खिन्नता से भर देता है. उन्हें गृह का कार्य और संतान का पालन करके भी बाहर के कामों में पति का हाथ बंटाना पड़ता है. सवेरे 6 बजे गोद में छोटे बालक को तथा भोजन के लिए एक मोटी काली रोटी लेकर मजदूरी के लिए निकली हुई स्त्री जब संध्या के 7 बजे घर लौटती है तो संसार भर का आहत मातृत्व उसके शुष्क ओठों में कराह उठता है. उसे श्रांत शिथिल शरीर से फिर घर का आवश्यक कार्य करते और उसपे कभी-कभी मद्यप पति के निष्ठुर प्रहारों को सहते देख कर करुणा को भी करुणा आए बिना नहीं रहती.’ ‘मध्यम श्रेणी की महिलाओं को गृह के इतर और महत्वपूर्ण दोनों प्रकार के कार्यों से इतना अवकाश ही नहीं मिलता कि वे कभी अपनी स्थिति पर विचार कर सके. जीवन के आरंभिक वर्ष कुछ खेल में, कुछ गृह-कार्यों के सीखने में व्यतीत कर जब से वे केवल शाब्दिक अर्थवाले अपने गृह में चरण रखती हैं , तब से उपेक्षा और अनादर की अजस्र वर्षा में ठिठुरते हुए मृत्यु के अंतिम क्षण गिनती रहती हैं. स्वत्वहीन धनिक महिलाओं को यदि सजे हुए खिलौने बनकर रहने का सौभाग्य प्राप्त है तो साधारण श्रेणी की स्त्रियों को क्रीत दासी का दुर्भाग्य.’ ‘इस समय हमारे समाज में केवल दो प्रकार की स्त्रियां मिलेंगी- एक वे जिन्हें इनका ज्ञान ही नहीं है कि वे भी एक विस्तृत मानव-समुदाय की सदस्य हैं, और उनका भी एक ऐसा स्वतंत्र व्यक्तित्व है, जिसके विकास से समाज का उत्कर्ष और संकीर्णता से अपकर्ष संभव है; दूसरी वे जो पुरुषों की समता करने के लिए उन्हीं के दृष्टिकोण से संसार को देखने में, उन्हीं के गुणावगुणों का अनुकरण करने में जीवन के चरम लक्ष्य की प्राप्ति समझती हैं.’ ‘संसार के बड़े-से-बड़े, असंभव-से-असंभव परिवर्तन आदि में इने-गिने व्यक्ति ही रहते हैं, शेष असंख्य तो कुछ जानकर और कुछ अनजाने में ही उनके अनुकरणशील बन जाया करते हैं.’
महादेवी की रचनाओं को उम्र के अलग-अलग पड़ावों पर पढ़ते हुए उनके व्यक्तित्व और साहित्य को दी गई उनकी विरासत पर नए पहलू से विचार करने की आवश्यकता महसूस होने लगती है, जो मेरी दृष्टि में किसी भी रचनाकार के प्रासंगिक और कालातीत बने रहने का बड़ा आधार है.
प्रेम और वेदना की अमर गायिका के रूप में प्रचलित कवयित्री की रचनाएं समसामयिक संदर्भों में स्त्री-अधिकारों को भी वाणी देने का कार्य कर सकती है, यह उनकी रचनाओं से ही पता चलता है. ऐसा लगता है कि स्त्री मुक्ति के तमाम संघर्षों में महादेवी की पंक्तियों को नारे की तरह उपयोग किया जा सकता है.
‘तू न अपनी छांह को अपने लिए कारा बनाना!जाग तुझको दूर जाना!’