महात्मा गांधी को पाकिस्तान कितना जानता-समझता है
BBC
अविभाजित भारत में गांधी लाहौर, कराची जैसे आज के पाकिस्तान के तमाम शहरों में उतने ही महत्वपूर्ण थे जितने आज भारत में हैं. लेकिन बंटवारे के बाद पाकिस्तान में उन्हें कैसे याद किया जाता है.
पाकिस्तान में महात्मा गांधी की मूर्तियां दो जगहों पर हैं. पहली, इस्लामाबाद के पाकिस्तान संग्रहालय में और दूसरी, इस्लामाबाद में ही भारत के उच्चायोग में.
पाकिस्तान संग्रहालय में निश्चित रूप से उनकी मूर्ति कोई सम्मान के भाव से नहीं लगाई गई है. वहां लगी प्रतिमा में वे मोहम्मद अली जिन्ना से बात कर रहे हैं. दरअसल, सितंबर 1944 में इन दोनों नेताओं के बीच भारत की आज़ादी को लेकर मुंबई (तब बम्बई) में कई दौर की बातचीत हुई थी. संग्रहालय में रखी यह मूरत उसी घटना को दिखाती है.
महात्मा गांधी की यदि 30 जनवरी, 1948 को हत्या न हुई होती तो कुछ दिनों बाद वे पाकिस्तान जाने वाले थे. वे लाहौर, रावलपिंडी और कराची जाने की ख़्वाहिश रखते थे. गांधी जी पाकिस्तान की यात्रा इसलिए करना चाहते थे क्योंकि दोनों देशों में बंटवारे के बाद हुई भयंकर हिंसा के बाद सौहार्द का वातावरण बने.
गांधी जी ने कहा भी था, "मैं लाहौर जाना चाहता हूं. मुझे वहां जाने के लिए किसी तरह की सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है. मुझे मुसलमानों पर भरोसा है. वे चाहें तो मुझे मार सकते हैं? पर (पाकिस्तान) सरकार मेरे आने पर रोक कैसे लगा सकती है. अगर वह मुझे नहीं आने देना चाहेगी, तो उसे मुझे मारना होगा.'' - (गांधी वांगमय, खंड 96: 7 जुलाई, 1947-26 सितंबर, 1947, पेज 410).
फ़र्क़ गांधी और जिन्ना का